लखनऊ| शहरी और ग्रामीण इलाकों में कुत्तों और अन्य जानवरों के काटने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। केजीएमयू लखनऊ के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में आए घायलों के विश्लेषण में सामने आया है कि ऐसे मामलों में हर तीसरा पीड़ित नाबालिग होता है, जबकि कुल मामलों में से हर चार में तीन पीड़ित पुरुष पाए गए। यह अध्ययन इंडियन जर्नल ऑफ प्लास्टिक सर्जरी में प्रकाशित हुआ है। अगस्त 2024 से जुलाई 2025 तक श्रेणी-3 के जानवरों के काटने से घायल 138 रोगियों को इस अध्ययन में शामिल किया गया। श्रेणी-3 में कुत्तों और जंगली जानवरों के गंभीर जोखिम वाले मामलों को रखा जाता है, जिनमें रेबीज का खतरा सबसे अधिक होता है और तत्काल इलाज की आवश्यकता होती है। इन 138 मामलों में 132 यानी 95.7 फीसदी मामले कुत्तों के काटने के थे, जबकि शेष मामले सियार के काटने से जुड़े पाए गए। कुल घायलों में 103 पुरुष थे तथा 18 वर्ष से कम आयु वाले 34.8 फीसदी थे। 61 फीसदी पीड़ित ग्रामीण इलाकों से आए थे और 63.8 फीसदी घटनाएं दिन के समय हुईं। अध्ययन में पाया गया कि 83.3 फीसदी मामले आवारा जानवरों के काटने से जुड़े थे और प्लास्टिक सर्जरी विभाग में इलाज के बाद अधिकांश घाव सामान्य रूप से ठीक हो गए। विशेषज्ञों ने बताया कि यदि कुत्ता, सियार या बंदर जैसे जानवरों ने काटा हो तो घाव को तुरंत 15 मिनट तक साबुन से धोना चाहिए, इससे रेबीज का खतरा लगभग 60 फीसदी तक कम हो जाता है। डॉ. विक्रम सिंह के अनुसार, कुत्ते के काटने के बाद सबसे पहले इम्युनोग्लोबलिन का इंजेक्शन देना चाहिए और इसके बाद रेबीज का टीका लगाना जरूरी है, जो 24 घंटे के भीतर लगवाना सबसे प्रभावी होता है। देर होने पर टीके की प्रभावशीलता कम हो जाती है। रेबीज संक्रमण के मुख्य लक्षणों में पानी से डर लगना, खाना-पानी निगलने में कठिनाई, बुखार, लार गिरना, बेचैनी और लकवा शामिल हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि घाव पर मिर्च या अन्य घरेलू सामग्री न लगाएं और अधिक घाव होने पर भी टांके न लगवाएं, बल्कि तुरंत चिकित्सकीय मदद लें।






