आंकड़ों की रोशनी में समझिए क्यों बदल रहा है बिहार का राजनीतिक गणित
प्रशांत कटियार
बिहार (Bihar) की राजनीति (politics) हमेशा से ही संख्या गणित, जातीय समीकरण और गठबंधन की कला का अनोखा मिश्रण रही है। यहाँ कोई भी दल अकेले पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना लगातार चुनौतीपूर्ण पाता है। यही कारण है कि गठबंधन की राजनीति बिहार की पहचान बन चुकी है। ऐसे माहौल में नीतीश कुमार जैसे नेता अपनी रणनीतिक क्षमता से बार बार राजनीतिक केंद्र में आ जाते हैं।
बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं। दो प्रमुख चुनावों के आंकड़े यह साबित करते हैं कि भाजपा अकेले सत्ता में नहीं आ सकती और नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रभाव अब भी निर्णायक है।
2015 का चुनाव देखें तो
भाजपा की 53 सीटें, लगभग 24.4% वोट शेयर,जदयू की 71 सीटें, लगभग 16.8% वोट शेयर था।महागठबंधन ने भारी जीत लेकर राजनीतिक चित्र बदल दिया।
2020 का चुनाव, भाजपा की 74 सीटें, लगभग 19.46% वोट शेयर,जदयू की 43 सीटें, लगभग 15.39% वोट शेयर,एनडीए की कुल 125 सीटें, वोट शेयर करीब 37.26% यह आँकड़े साफ बताते हैं कि,भाजपा को जीतने के लिए गठबंधन जरूरी है। जदयू का वोट शेयर कम होते हुए भी सीटों की राजनीति में उसका प्रभाव मजबूत रहा है। और सबसे महत्वपूर्ण नीतीश कुमार की स्वीकृति बिहार में अब भी निर्णायक मानी जाती है।
बिहार में नीतीश कुमार का राजनीतिक ब्रांड केवल विकास या नेतृत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी गठबंधन कूटनीति ही उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है। वे भाजपा और महागठबंधन दोनों के साथ रहते हुए सत्ता का संतुलन बनाए रखते हैं। यही संतुलन उन्हें बिहार का स्थायी किंगमेकर बनाता है।नीतीश भले ही मुख्यमंत्री पद छोड़ें या उसके लिए समर्थन दें राजनीतिक सूत्र जानते हैं कि उनकी सहमति के बिना बिहार की सत्ता की कुंडी नहीं खुलती।
हालांकि भाजपा ने 2020 में जदयू से अधिक सीटें जीतीं, लेकिन इसके बावजूद वह तत्कालीन स्थिति में अपना मुख्यमंत्री घोषित करने की स्थिति में नहीं आई। कारण स्पष्ट हैं,बिहार में भाजपा का परंपरागत वोट बैंक अपेक्षाकृत सीमित है।नीतीश का जातिगत और विकास आधारित जनाधार राजनीतिक समीकरण बदल देता है।जदयू के बिना भाजपा अकेले सरकार बनाने से काफी दूर रहती है।यही वजह है कि भाजपा अपने मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा करने में अक्सर सतर्कता दिखाती है।
आंकड़ों, जातिगत समीकरण और राजनीतिक परिस्थितियों को मिलाकर देखें तो आज भी यह कहना कठिन नहीं कि,बिहार में भाजपा अकेले मुख्यमंत्री बनाने की स्थिति में आने से अभी भी दूर है।नीतीश कुमार आज भी बिहार की राजनीति का केंद्रीय स्तंभ हैं।उनकी राजनीतिक रणनीति,जो कई बार पलटने जैसी दिखती है वास्तव में शक्ति संतुलन की सूक्ष्म कला है।
बिहार की राजनीति नेता नहीं, समीकरण तय करते हैं। आंकड़े, गठबंधन और जातीय संतुलन यह तीनों हमेशा मिलकर तय करते हैं कि सरकार किसकी होगी और मुख्यमंत्री कौन बनेगा।और इस पूरे परिदृश्य में एक बात बिल्कुल स्पष्ट है,नीतीश कुमार आज भी बिहार की राजनीति की धुरी हैं, और भाजपा को नेतृत्व की दौड़ में उन्हीं के इर्द-गिर्द अपना स्थान तलाशना पड़ता है।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड है।


