आम के बगीचों में हल्दी की खेती: आत्मनिर्भर किसान की ओर एक हरित कदम

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डॉ के. पी मिश्रा

भारत की पारंपरिक खेती सदैव प्रकृति के अनुरूप रही है, लेकिन बदलते मौसम, मिट्टी की घटती उपजाऊ शक्ति और आर्थिक अनिश्चितताओं ने किसानों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। ऐसे समय में कृषि और वानिकी को साथ जोड़ने वाली पद्धति किसानों के लिए एक स्थायी तथा लाभदायक विकल्प बनकर उभर रही है। इसी क्रम में आम के बगीचों में हल्दी की फसल उगाना एक सफल और संतुलित मॉडल के रूप में सामने आया है, जो खेत का पूरा उपयोग करते हुए किसानों को दोहरी आमदनी दिलाने में सक्षम है।

यह पद्धति इस सोच पर आधारित है कि एक ही खेत से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। पेड़ों और फसलों का संयोजन मिट्टी की नमी को बनाए रखता है, कटाव को रोकता है और उत्पादन को टिकाऊ बनाता है। आम के वृक्षों की छाया तथा हल्दी की छाया सहन करने की क्षमता इस संयोजन को और भी उपयुक्त बनाती है। हल्दी स्वभाव से छाया में अच्छी वृद्धि करने वाली फसल है, इसलिए यह आम के पेड़ों के नीचे स्वाभाविक रूप से बेहतर उपज देती है।

इस मॉडल के पाँच मुख्य लाभ किसानों के हित में हैं—
पहला, हल्दी छाया में तेजी से पनपती है।
दूसरा, आम के बगीचों में खाली बची भूमि का उपयोग हो जाता है।
तीसरा, एक ही खेत से फल और मसाले दोनों की आमदनी होती है।
चौथा, हल्दी की जड़ें मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाती हैं और खरपतवारों को रोकती हैं।
पाँचवाँ, हल्दी में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व सामान्य कीटों से बचाव में सहायक होते हैं, जिससे आम के पेड़ों को भी लाभ मिलता है।

लागत और लाभ की दृष्टि से भी यह मॉडल अत्यंत लाभकारी है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में हल्दी लगाने पर लगभग 60 हजार रुपये खर्च आता है और इससे डेढ़ से दो लाख रुपये तक की आमदनी प्राप्त हो सकती है। वहीं आम के फल देने की अवस्था में पाँचवें वर्ष से दो से तीन लाख रुपये तक की आय संभव होती है। कुल मिलाकर लगभग 90 हजार रुपये के निवेश पर तीन से पाँच लाख रुपये तक की अनुमानित आय किसानों के लिए बड़ी राहत साबित हो सकती है।

किसानों के लिए व्यवहारिक सुझावों में जून–जुलाई में रोपाई करना, सुदर्शन, ईरोड और मेघा हल्दी जैसी किस्में अपनाना, पानी बचाने वाली टपक सिंचाई विधि का उपयोग करना और रसायनमुक्त खेती को बढ़ावा देना शामिल है। रसायनमुक्त हल्दी की मांग अधिक होने से किसानों को बेहतर दाम मिलता है। साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विभाग और सहकारी बैंकों द्वारा प्रशिक्षण, सहायता और उचित बाज़ार मार्गदर्शन की आवश्यकता है, ताकि अधिक किसान इससे लाभ उठा सकें।

आज जब एक ही फसल पर निर्भरता जोखिम बन गई है, तब आम के बगीचों में हल्दी की खेती किसानों को सुरक्षित, टिकाऊ और अधिक आमदनी वाला रास्ता प्रदान कर सकती है। सच तो यह है कि जहां हल्दी की खुशबू और आम की मिठास साथ मिलती है, वहां खेत भी लहलहाते हैं और किसान भी समृद्धि की ओर बढ़ते हैं।

 

लेखक वानिकी से पीएचडी है।

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