प्रशांत कटियार
14 नवंबर, यानी बाल दिवस, सिर्फ एक तिथि या औपचारिक उत्सव नहीं है। यह वह दिन है जब हम याद करते हैं कि बच्चे केवल परिवार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं। उनकी शिक्षा, सुरक्षा, संवेदना और सपनों की रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है—एक ऐसा कर्तव्य जिसे हर समाज को सबसे पहले निभाना चाहिए।
बच्चों की आँखों में जो सपने चमकते हैं, वे आने वाले भारत की दिशा तय करते हैं। आज का बच्चा कल का वैज्ञानिक भी हो सकता है, शिक्षक भी, नेता भी, किसान भी और सैनिक भी। आज उनके हाथों में खिलौने हैं, लेकिन भविष्य में इन्हीं हाथों में देश की प्रगति की कमान होगी।
लेकिन सिर्फ सपनों की बातें काफी नहीं। ज़मीन पर कई कठोर वास्तविकताएँ भी हैं—
कहीं बच्चे शिक्षा से वंचित हैं,
कहीं बाल मजदूरी की मजबूरी झेल रहे हैं,तो कहीं परिवार और समाज की उपेक्षा उनकी खुशी छीन लेती है।
बाल दिवस हमें इन सभी चुनौतियों पर गंभीरता से सोचने और समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने का मौका देता है।
आज जरूरत है कि हम
बच्चों को सुरक्षित वातावरण दें,
उन्हें गुणवत्ता आधारित शिक्षा उपलब्ध कराएँ,उनकी रचनात्मकता को प्रोत्साहन दें,और सबसे ज़रूरी, उन्हें प्रेम और सम्मान दें।
हम सभी को यह स्वीकार करना होगा कि बच्चे आदेश नहीं, समझ की भाषा समझते हैं। उन्हें दंड नहीं, संवाद चाहिए; डर नहीं, सहारा चाहिए; और मजबूरी नहीं, अवसर चाहिए।
इस बाल दिवस पर मेरा यही संदेश है कि—
हर घर, हर स्कूल और हर समाज ऐसा माहौल बनाए, जिसमें हर बच्चा बिना भय, बिना भेदभाव और बिना दबाव के अपने सपनों को उड़ान दे सके।
बच्चों को सिर्फ पढ़ाएँ नहीं, उन्हें समझें।
उन्हें सिर्फ बढ़ने दें नहीं, उन्हें खिलने दें।
क्योंकि अंत में,
राष्ट्र की शक्ति उसकी सीमाओं में नहीं, बल्कि उसके बच्चों की मुस्कान में बसती है।






