उपदेश में जीवन का सार: प्रेमानन्द जी की सीख, जो हर इंसान को समझनी चाहिए

0
14

‘गलती इंसान से होती है, पर रुकना इंसान की प्रकृति नहीं’ — प्रेमानन्द जी

आज के भागदौड़ भरे समय में लोग सबसे ज़्यादा जिस बोझ के नीचे दबे हुए हैं, वह है ओवर थिंकिंग, भविष्य की चिंता और अपने ही मन का डर। हर इंसान की तकलीफ़ का बड़ा कारण उसका मन है — वही मन जो उसे डराता भी है, और उठाता भी है।
इसी मन को जीतने की सबसे सरल शिक्षा देते हैं प्रेमानन्द जी, जिनके उपदेश जीवन को सरल और संतुलित बनाने का मार्ग दिखाते हैं।
प्रेमानन्द जी कहते हैं“भूल सबसे होती है। गलती हो जाए तो कोई बात नहीं, पर रुकना मत।”
उनके अनुसार, इंसान की परिपक्वता उसकी गलतियों में नहीं, बल्कि उन गलतियों से उभरने की क्षमता में होती है।
किसी भी कठिनाई या गिरावट को अंत नहीं समझना चाहिए। हर गिरावट एक नए उठान का अवसर है।
आज के युवाओं के लिए यह सीख विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि असफलता का डर उनके आत्मविश्वास को सबसे अधिक कमजोर करता है।
प्रेमानन्द जी मानते हैं कि आधुनिक जीवन की आधी उलझनें इंसान खुद पैदा करता है।
“ज़्यादातर लोग भविष्य की चिंता में इतना खो जाते हैं कि वर्तमान के आनंद से दूर हो जाते हैं।”
वह बताते हैं कि ओवरथिंकिंग इंसान को भीतर से खा जाती है।
यह न केवल मानसिक शांति छीन लेती है, बल्कि इंसान को अनिर्णय, डर और तनाव में भी डाल देती है।
उनके अनुसार, मन को शांत रखने का पहला तरीका है—
जहाँ हो, जैसे हो, पूरी सच्चाई से वर्तमान को जियो।
सुख–दुःख हमारे बाहर नहीं, हमारी सोच में बसते हैं प्रेमानन्द जी की एक और गहरी बात है “सुख और दुःख परिस्थितियों से नहीं, हमारी सोच से पैदा होते हैं।”
इंसान जिस दृष्टि से जीवन को देखता है, वही उसकी भावनाओं को तय करती है।
एक ही परिस्थिति में कोई व्यक्ति टूट जाता है, तो कोई व्यक्ति और मजबूत हो जाता है।
यह इसलिए होता है क्योंकि स्थिति नहीं बल्कि सोच फर्क पैदा करती है।
प्रेमानन्द जी का पूरा उपदेश एक ही केंद्रीय विचार में सिमट जाता है “अपने ऊपर और ईश्वर पर विश्वास रखो।”
विश्वास वह शक्ति है जो इंसान को अंधेरे में भी रास्ता दिखाती है।
यही विश्वास गिरने के बाद उठने की हिम्मत देता है, और यही विश्वास सिखाता है कि हर मुश्किल एक अनुभव है, न कि अंत। आज का युवा सोशल मीडिया की चमक, तुलना, और प्रतियोगिता में उलझकर अपनी मानसिक शांति खो रहा है।
प्रेमानन्द जी के उपदेश उसे यह याद दिलाते हैं कि जीवन को उतना कठिन मत बनाओ जितना सोच बना देती है।
गलतियाँ बुरी नहीं, उनसे न सीखना बुरा है। भविष्य में नहीं, वर्तमान में जीना सीखो। मन को साध लोगे, तो संसार को जीत लोगे। प्रेमानन्द जी का उपदेश किसी दार्शनिक ग्रंथ से कम नहीं।
यह हमें सिखाता है कि जीवन का हर मोड़ सीख है, हर गलती अनुभव है, और हर चुनौती अवसर।
यदि इंसान अपनी सोच को बदल ले, तो उसका जीवन स्वतः बदल जाता है।
उनका संदेश सरल है पर प्रभाव गहरा “डरो मत, टूटो मत, रुको मत। उठो, और विश्वास के साथ आगे बढ़ो।”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here