निठारी कांड के निर्णय पर उठते सवाल

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अशोक मधुप
वरिष्ठ  पत्रकार
निठारी हत्याकांड के दोषी ठहराए गए सुरेंद्र कोली को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बेहद दुख की बात है कि लंबी जांच के बावजूद निठारी के जघन्य हत्याकांड के असली अपराधी की पहचान कानूनी मानकों के अनुरूप स्थापित नहीं हो पाई। अपराध जघन्य थे और परिवारों की पीड़ा अथाह थी। सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा के निठारी हत्याकांड से जुड़े अंतिम लंबित मामले में सुरेंद्र कोली को बरी करते हुए यह टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने फैसले में कहा, आपराधिक कानून अनुमान या पूर्वधारणा के आधार पर दोषसिद्धि की अनुमति नहीं देता। खुदाई शुरू होने से पहले घटनास्थल को सुरक्षित नहीं किया गया था, खुलासे को उसी समय दर्ज नहीं किया गया। रिमांड दस्तावेज में विरोधाभासी विवरण थे और कोली को समय पर अदालत की ओर से निर्देशित चिकित्सा जांच के बिना लंबे समय तक हिरासत में रखा गया। अदालत ने कोली की सजा को रद्द करते हुए कहा कि अगर वह किसी और मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाए। यह फैसला उन परिवारों और कानूनी हलकों के लिए अहम है, जो पिछले 18 वर्षों से इस मामले पर नजर रखे हुए थे। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष सुरेंद्र कोली के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश नहीं कर पाया। अदालत ने माना कि जांच के दौरान कई गंभीर प्रक्रियागत खामियां रहीं, इसके चलते दोषसिद्धि बरकरार नहीं रखी जा सकती। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर उम्रकैद या फांसी नहीं दी जा सकती।
इससे  पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के नोएडा के चर्चित निठारी कांड के 12 केस के आरोपी सुरेंद्र कोली और दो केस में फंसी की सजा पाए कोठी डीएस−5  के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को  भी ने बरी कर दिया है।
न्यायालय ने इन्हें   दोष मुक्त तो  करार दे दिया, किंतु  ये न्याय एक तरफा है।  अधूरा  है। निठारी कांड तो हुआ है। चर्चित निठारी कांड में निचली अदालत से कोली को एक दर्जन से अधिक मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। निठारी गांव के कोठी डीएस−5  के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को दो  केस में  फंसी की सजा हो  चुकी है। अब जब की ये निचली अदालत से फांसी की सजा पाए ये दोनों आरोपी हाईकोर्ट ने बरी कर दिए तो व्यवस्था को यह तो  बताना  ही होगा कि फिर इस कांड के आरोपी कौन हैं? किसने  इस कांड  की 19 घटनाओं को अंजाम दिया।  कांड  तो  हुआ ही है। ये  दोनों  आरोपी इसलिए बरी हो गए कि इनके विरूद्ध सुबूत नही थे, किंतु पीड़ित परिवार को भी तो  न्याय  चाहिए। उनके परिवार की युवतियों, बेटियों और बच्चों  पर जुल्म करने  वाला,  उनसे  व्यभिचार कर उन्हें काटकर खाने वाला कोई तो होगा? किसी ने तो  ये कांड किया होगा?  उसे  कानून की जद में लाकर सजा कौन दिलाएगा? ये निर्दोष थे तो फिर इनकी कोठी के पास नाले में  किसने मारकर इनको  डाला?
29 दिसंबर 2006 को उत्तर प्रदेश के नोयडा  में मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे नाले से 19 बच्चों और महिलाओं के कंकाल मिले। मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली गिरफ्तार  किया। आठ फरवरी 2007 को कोली और पंढेर को 14 दिन की सीबीआई हिरासत में भेजा गया। मई 2007 को सीबीआई ने पंढेर को अपनी चार्जशीट में अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में आरोप मुक्त कर दिया था। दो माह बाद अदालत की फटकार के बाद सीबीआई ने उसे मामले में सह अभियुक्त बनाया। 13 फरवरी 2009 को विशेष अदालत ने पंढेर और कोली को 15 वर्षीय किशोरी के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई। ये पहला फैसला था। इसके बाद 11 केस में दोनों को सजा हुई।
पुलिस ने इस मामले में कहा था कि कम से कम 19 युवा महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था, उनकी हत्या कर दी गई थी और उनके शवों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे। पुलिस ने उस समय कहा था कि ये हत्याएं पंढेर के घर के अंदर हुई थीं, जहां कोली नौकर के तौर पर काम करते थे। पुलिस ने आरोप लगाया कि जिन बच्चों के अवशेष बैग में छिपे हुए पाए गए थे, उन्हें कोली ने मिठाई और चॉकलेट देकर लालच देकर मार डाला था।पुलिस का कहना था कि जांच के दौरान कोली ने नरभक्षण और नेक्रोफिलिया (शवों के साथ संबंध बनाने) की बात कबूल की थी। बाद में उन्होंने अदालत में अपना कबूलनामा ये कहते हुए वापस ले लिया कि उनसे जबरन ये बयान दिलवाया गया था। सीबीआई ने सुरेंदर कोली और पंढेर के खिलाफ़ 19 मामले दर्ज किए थे। जहां कोली पर हत्या, अपहरण, बलात्कार, सबूतों को मिटाने जैसे आरोप थे तो वहीं पंढेर पर अनैतिक तस्करी का आरोप था। इस मामले की गूंज कई सालों तक देश गूंजती रही थी। लोगों ने पुलिस पर लापरवाही बरतने के आरोप लगाए थे। स्थानीय लोगों ने उस समय कहा था कि पुलिस इस मामले में इसलिए भी कार्रवाई नहीं कर सकी क्योंकि लापता होने वालों में से अधिकतर गरीब परिवार के थे।
न्यायालय ने निर्णय में ये माना कि आरोपियों के विरूद्ध  सबूत नही हैं।  न्यायालय ने ये नही कहा कि कांड  हुआ ही नही। उसने माना कि कांड तो  हुआ। 19 महिलाओं  और बच्चियों के कंकाल कोठी डीएस−5  के  सामने  नाले से मिले। अब प्रश्न यह है कि ये नही तो किसी और ने ये कांड किया है। जिसने कांड किया उसे सजा  दिलाने की किसकी जिम्मेदारी है? किंतु   लगता है कि न्यायालय ने इस केस के आरोपी के बरी हो  जाने के बाद ये  केस व्यवस्था  की कबाड़ की फाइल में चला  जाएगा। 2006 से न्याय  की आशा में बैठे  पीडित परिवार को रो पीट कर चुप हो बैठना पड़ेगा । इस निर्णय के बाद पीड़ितों के माता पिता और परिवार वालों का दुख और गहरा हो गया। अपनों को खोने वालों ने कहा कि 19 साल बाद भी हम लोगों को न्याय नहीं मिला। निठारी कांड में अपने बच्चों को खोने वाले पैरंट्स का लगभग एक ही सवाल है कि अगर पंढ़ेर और कोली निर्दोष हैं तो उनके बच्चों को किसने मारा है?
एक बात और हाईकोर्ट ने कहा कि शवों की मेडिकल रिपोर्ट के  आधार पर जांच  नही हुई। ये  रिपोर्ट मानव तस्करी की और इशारा कर रही थी। दोनों  न्यायधीश ने जांच  पर नाखुशी जताते हुए ये भी कहा कि जांच  बेहद खराब है। सुबूत जुटाने की मौलिक प्रक्रिया का पूरी तरह उल्लंघन किया गया। जांच एसेंसियों की नाकामी जनता के विश्वास के साथ धोखा  है। हाईकोर्ट ने  कहा कि जांच एजेंसियों ने अंग व्यापार के गंभीर पहलुओं की जांच किए बिना एक गरीब नौकर को खलनायक की तरह पेश किया।  हाईकोर्ट ने माना कि  ऐसी गंभीर चूक के कारण मिलीभगत सहित कई गंभीर निष्कर्ष  संभव है। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि  दोनों  आरोपियों के खिलाफ कोई  सुबूत नही हैं। सुबूत के अभाव में दोनों आरोपियों को लगभग  19 साल जेल में रहना  पड़ा। अकारण जेल में बिताए  इनके इन सालों के लिए कौन जिम्मेदार है?
इस केस में  शुरूआत से ही पुलिस पर आरोप  लगते रहते  हैं कि वह इस मामले में रूचि नही ले रही।उसीके बाद मामला सीबीआई को गया। अब सीबीआई की जांच पर भी सवाल उठा  है तो  सीबीआई  को अपनी जांच और प्रक्रिया पर भी  सोचना  और बदलाव करना  होगा। क्योंकि देश में उसका बहुत सम्मान है। प्रत्येक प्रकार के टिपिकल मामले में उसी से जांच कराने की बात आती है।  अब उसकी भी  जांच  ऐसी ही निम्न स्तरीय होगी,तो फिर उसे  सोचना तो  होगा ही।
अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)
ashokmadhup@gmail.com

 

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