“वंदे मातरम” और सरदार पटेल की भावना,राष्ट्रगीत के सम्मान और राष्ट्र आत्मा के सम्मान जुड़ाव

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प्रशांत कटियार

देश जब-जब अपनी आत्मा से जुड़ता है, तब “वंदे मातरम” की गूंज सुनाई देती है। यह गूंज किसी मंच या सभा की नहीं, बल्कि भारत की धड़कन की है
जो हर उस हृदय में बसती है जो अपनी मिट्टी से प्रेम करता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में “वंदे मातरम” पर अपने वक्तव्य में केवल एक राजनीतिक संदेश नहीं दिया, बल्कि राष्ट्र चेतना का आह्वान किया।उनके शब्दों में स्पष्टता थी, स्वर में दृढ़ता थी और संदेश में भारतीयता थी। उन्होंने कहा  “वंदे मातरम के विरोध का कोई औचित्य नहीं है। यह वही सोच है जिसने भारत के विभाजन को जन्म दिया था।” यह वक्तव्य मात्र एक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संवाद का उद्घोष है। योगी आदित्यनाथ का सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रति झुकाव किसी राजनीतिक परंपरा से नहीं, बल्कि विचारधारा की समानता से उपजा है।
पटेल ने भारत को रियासतों के टुकड़ों से निकालकर एक राष्ट्र बनाया था, और योगी उसी एकता को भावनाओं के स्तर पर मजबूत करना चाहते हैं। पटेल ने कहा था  “भारत का एकीकरण केवल राजनीतिक नहीं, आत्मिक होना चाहिए।”
आज योगी आदित्यनाथ उसी आत्मिक एकता को पुनर्जीवित करने की बात करते हैं। उनकी दृष्टि में “वंदे मातरम” वह भावनात्मक सूत्र है जो भारत को एक रखता है।
योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि “प्रदेश के हर विद्यालय में वंदे मातरम अनिवार्य होगा”
दरअसल नई पीढ़ी में देशभक्ति को संस्कार के रूप में स्थापित करने की पहल है।
प्रदेश के लाखों विद्यार्थी जब प्रातःकाल एक स्वर में “वंदे मातरम” कहेंगे,तो वह केवल गान नहीं, एक भावनात्मक अनुशासन होगा।
वह बच्चों को यह याद दिलाएगा कि भारत केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि एक चेतना, एक संस्कार और एक साझा आत्मा है। सांस्कृतिक दृष्टि से यह निर्णय “राष्ट्रीयता” को प्रशासनिक आदेश से ऊपर ले जाकर संवेदना और गर्व का विषय बना देता है। योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण में कहा  “जो लोग सरदार पटेल की जयंती में शामिल नहीं होते,
वे जिन्नाह को सम्मान देने वाले कार्यक्रमों में दिखाई देते हैं।”

यह वाक्य आज की राजनीति पर गहरी टिप्पणी है। यह केवल आलोचना नहीं, बल्कि एक प्रश्न है क्या राष्ट्रवाद अब भी सुविधा का विषय है? योगी का यह कहना दरअसल उस विचारिक शुद्धता की मांग है जो पटेल की राजनीति का मूल थी,
जहां राष्ट्र सर्वप्रथम, मत बाद में। आज के दौर में जब ‘राष्ट्रवाद’ का अर्थ शोर और नारे तक सीमित किया जा रहा है,
योगी आदित्यनाथ उसे संस्कार और व्यवहार के स्तर पर लाना चाहते हैं। उनकी दृष्टि में “वंदे मातरम” किसी पार्टी का एजेंडा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की पहचान है।यह राष्ट्रवाद उस विचार पर खड़ा हैजहां विविधता सम्मान है, विरोध नहीं।जहां देशप्रेम केवल भाषण नहीं,बल्कि हर सुबह स्कूल में गूंजता एक गीत है।योगी आदित्यनाथ और सरदार पटेल,दोनों ही अलग युगों के प्रतीक हैं,पर उनकी सोच की जड़ें एक ही मिट्टी से निकलती हैं, भारत की अखंडता, एकता और स्वाभिमान की मिट्टी। पटेल ने भौगोलिक सीमाओं को जोड़ा,योगी सांस्कृतिक सीमाओं को जोड़ना चाहते हैं।पटेल ने सरहदें एक कीं,योगी दिलों को एक करने की बात करते हैं। यह वही परंपरा है जहां राष्ट्रवाद सत्ता का उपकरण नहीं,कर्तव्य का प्रतीक बन जाता है।
योगी आदित्यनाथ का “वंदे मातरम” पर आग्रह और सरदार पटेल की एकता की भावना,दोनों मिलकर आज के भारत को दिशा देने का काम कर रहे हैं।
यह गीत भारत की आत्मा की वह प्रतिध्वनि है,जो हर बार हमें यह याद दिलाती है कि हमारी असली पहचान किसी झंडे के रंग से नहीं, बल्कि उस भावना से है जो उसे लहराती है। जब बच्चे ‘वंदे मातरम’ गाएंगे, तब सरदार पटेल की एकता और योगी आदित्यनाथ का राष्ट्र-संस्कार दोनों भारत के भविष्य में एक साथ गूंजेंगे।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड हैँ।

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