डॉ. सुधाकर आशावादी
बिहार चुनाव का ऊँट किस करवट बैठेगा, विजय का वरण कौन करेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा है, किन्तु अपने राजनीतिक अस्तित्व की तलाश में जुटी कांग्रेस का रुदाली विलाप चुनाव परिणामों से पूर्व ही प्रारम्भ हो गया है। कहना अनुचित न होगा, कि चुनावों में वोट चोरी का विमर्श गढ़ने वाले तत्व जहाँ तहाँ वोट चोरी के प्रमाण तलाश कर चुनाव व्यवस्था को चुनौती देने में जुटे हैं। कभी मतदाता सूचियों पर सवाल उठाते हैं। कभी किसी भी घटना का तिल का ताड़ बनाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाने लगते हैं।
हर चुनाव को वोट चोरी से जोड़कर चुनाव आयोग पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस आज स्वयं सवालों के घेरे में है। 2014 से केंद्र की सत्ता से दूर कांग्रेस 2025 लोकसभा चुनावों में पहले से अधिक सीटें जीतकर आई, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का भी प्रदर्शन अच्छा रहा, यदि उन चुनावों में वोट चोरी हुई, तो वोट चोरी से किसका लाभ हुआ, किसे पहले से अधिक सीटें मिली ? चुनाव व्यवस्था में जुड़े लोग जानते हैं, कि कितने गहन प्रशिक्षण के उपरांत ईवीएम के प्रयोग में कितनी सावधानी बरती जाती है। लाखों कर्मचारी चुनाव की पारदर्शिता के लिए अपनी रातों की नींद और दिन का चैन गंवाते हैं, तब कहीं जाकर निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराते हैं।
अपनी राजनीतिक जमीन खो चुके राजनीतिक दल जन विश्वास खो देने के कारण चुनाव हारते हैं , किन्तु अपनी हार का ठीकरा अपनी कमजोरियों पर नहीं बल्कि चुनाव आयोग और सत्ता पक्ष पर फोड़ने से बाज नहीं आते। समझ नहीं आता कि कांग्रेसी युवराज आखिर ऐसा क्यों समझते हैं, कि आम मतदाता उनकी विचारधारा और वंशवाद का गुलाम है तथा वह केवल कांग्रेस के पक्ष में ही मतदान करने के लिए बाध्य है। क्या जिन वोटों के चोरी होने का आरोप कांग्रेस चुनाव आयोग और सत्ता पक्ष पर लगाती है, क्या वे सभी वोट कांग्रेस के प्रामाणिक वोट हैं ? कांग्रेस के वंशवादी परिवार की नीयत इस प्रकार के आरोपों से साफ समझी जा सकती है, क्योंकि कांग्रेस जानती है, कि वह जनसमर्थन खो चुकी है तथा उसकी हैसियत अपने बल पर सत्ता में टिकने की नहीं रह गई है। इसलिए ही झूठे विमर्श गढ़ कर वह अपनी खीज मिटाने का पूर्वनियोजित प्रयास कर रही है। (विनायक फीचर्स)






