झूठे मुकदमों की जालसाजी में फंसाकर पत्रकार का दशक भर से कानूनी उत्पीडऩ

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यूथ इंडिया समाचार
फर्रुखाबाद। लोकतंत्र के प्रहरी पर जब कानून की धाराएँ ही अत्याचार का औज़ार बन जाएँ, तो न्याय का अर्थ बदल जाता है।
‘यूथ इंडिया’ के संपादक शरद कटियार का मामला ऐसा ही एक उदाहरण है, जहाँ सत्य की आवाज़ को झूठे मुकदमों, कुर्की और जेल के जरिए दबाने की कोशिश की गई। पूरा दस वर्ष बीत जाने के बावजूद न कोई साक्ष्य मिला, न रिपोर्ट आई, न अपराध सिद्ध हुआ, फिर भी एक निर्दोष रहते 86 दिन जेल में बंद रहा।
वर्ष 2015, कोतवाली मोहम्मदाबाद (फर्रुखाबाद) में 21-22 मार्च की रात धारा 307 (हत्या का प्रयास), 504 (उकसाना) और 506 (धमकी देना) के तहत शरद कटियार पर मुकदमा दर्ज किया गया। कोतवाली प्रभारी थे राम जीवन यादव जो की उप निरीक्षक भी नहीं थे हेड कांस्टेबल प्रोन्नत थे।
मुकदमे के वादी उमेश यादव और चिकित्सक डॉ. धर्मेंद्र कुमार, जो इस प्रकरण के मुख्य पात्र थे, दोनों अब मृत हैं, परंतु मुकदमा अब तक लंबित है। दर्ज आरोपों में न तो हथियार बरामद हुआ, घटना मे दर्शाई गई तावड़ तोड़ चलाई गई गोलियों के ख़ोके, न वाहन मिला, और चिकित्सा रिपोर्ट आज तक विधि विज्ञान प्रयोगशाला से प्राप्त नहीं हुई।
फिर भी, बिना ठोस साक्ष्य 86 दिन जेल में रखा गया, जो मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। बोले, मैंने अपराध नहीं किया था, पर जेल में 86 दिन बिताने पड़े।
हर तारीख मेरे लिए सज़ा थी, हर पेशी मेरे सम्मान पर वार। उनके अनुसार, इसी झूठे मुकदमे में घर की दो बार कुर्की तीन माह मे की गई और परिवार को लगातार एक दशक उत्पीडऩ सहना पड़ा।
उन्होंने आरोप लगाया कि यह सब स्थानीय नेता वकील-प्रशासन गठजोड़ के तहत हुआ, जिसमें प्रभावशाली तत्वों ने पत्रकारीय रिपोर्टिंग रोकने का प्रयास किया।
बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हाल ही मे अधिवक्ता अवधेश कुमार मिश्रा ने स्वीकार किया कि वह इस मुकदमे में वकील था। इसी क्रम मे 27 मार्च 2015 को थाना राजेपुर में अपहरण और गैंगरेप का फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसमें भी उसी वकील का वकालतनामा पाया गया। वादिनी मुकदमा ने न्यायालय में दूसरी बार स्वीकार कर कहा कि सब वकील अवधेश मिश्रा ने किया उसके अनपढ़ होने का फायदा उठाकर।
इसके बाद क्रमश: नरगिस, ज्योति उर्फ मुस्कान, अर्पिता, सत्यनारायण, राजीव शुक्ला, अरुण कटियार जैसे मामलों में भी इसी नेटवर्क की भूमिका देखी गई।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला दुरुपयोग की माला में गूंथा गया षड्यंत्र है। जब किसी केस में एफएसएल रिपोर्ट लंबित रहे, कोई बरामदगी न हो, वादी और गवाह मृत हों, और फिर भी अभियुक्त को जेल में बंद रखा जाए, तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (क्रद्बद्दद्धह्ल ह्लश रुद्बद्घद्ग ड्डठ्ठस्र क्कद्गह्म्ह्यशठ्ठड्डद्य रुद्बड्ढद्गह्म्ह्ल4) का उल्लंघन माना जाता है।
इस स्थिति में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत न्यायालय को कार्यवाही निरस्त करने का अधिकार है। 21-22 मार्च 2015 कोतवाली मोहम्मदाबाद में 307, 504, 506 आईपीसी में मुकदमा दर्ज अभियुक्त: शरद कटियार मार्च 2015, जून 2015, और 86 दिन जेल में निरुद्ध, कोई साक्ष्य नहीं मिला मौलिक अधिकारों का हनन 27 मार्च 2015 थाना राजेपुर में अपहरण और गैंगरेप का झूठा मुकदमा अधिवक्ता अवधेश मिश्रा का नाम अप्रैल-जून 2015 दो बार घर की कुर्की की कार्रवाई परिवार पर प्रशासनिक दबाव बनाया गया।
उत्तर प्रदेश के कई पत्रकार संगठनों ने इसे कानून के दुरुपयोग से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया था।
उन्होंने राज्य सरकार और न्यायपालिका से मांग की थी कि इस प्रकरण की स्वतंत्र न्यायिक जांच की जाए, वरिष्ठ पत्रकारों ने कहा कि यदि एक संपादक को झूठे मुकदमों के जरिए जेल भेजा जा सकता है, तो कोई भी स्वतंत्र कलम सुरक्षित नहीं है।
यह केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं, यह लोकतंत्र में न्यायिक जवाबदेही की परीक्षा है। जब एक पत्रकार को झूठे मुकदमे, कुर्की और जेल के सहारे चुप कराने की कोशिश होती है, तो यह संविधान की आत्मा पर हमला है। जो पत्रकार कलम से सच्चाई लिखता है, उसे हथकडिय़ों से नहीं, सम्मान से जवाब मिलना चाहिए।

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