शरद कटियार
आज से लगभग 150 वर्ष पहले बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने एक ऐसा गीत लिखा, जिसने गुलाम भारत में आज़ादी की चिंगारी जलाई।
“वंदे मातरम्” — यह केवल दो शब्द नहीं, बल्कि भारत के हर उस पुत्र की भावना है जिसने अपनी माँ भूमि के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया।
यह गीत उस दौर में जन्मा जब भारत अंग्रेज़ी शासन की जंजीरों में बंधा था। लेकिन इन दो शब्दों ने लाखों दिलों में आज़ादी की लौ जला दी।
यही गीत 1905 के बंग-भंग आंदोलन का नारा बना और देशभर में युवाओं की आवाज़ बन गया।
“वंदे मातरम्” का अर्थ है — “माँ, मैं तुझे प्रणाम करता हूँ।”
यह केवल मातृभूमि को नमन नहीं, बल्कि उसकी महिमा का उत्सव है।
इस गीत में भारत की नदियों की शीतलता है, खेतों की हरियाली है, पर्वतों की ऊँचाई है और जनमानस की आस्था है।
> सुजलाम् सुफलाम् मलयजशीतलाम् शस्यशामलाम् मातरम्
— ये पंक्तियाँ भारत की सुंदरता और समृद्धि का सजीव चित्र खींचती हैं।
आज़ादी की लड़ाई में यह गीत क्रांतिकारियों की आत्मा बन गया।
भगत सिंह, बिपिनचंद्र पाल, लाला लाजपत राय जैसे वीरों ने इस गीत को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया।
हर जेल, हर आंदोलन और हर जनसभा में यही आवाज़ गूंजती थी — “वंदे मातरम्!”
यह गीत ब्रिटिश हुकूमत को डराने लगा था, क्योंकि यह आवाज़ केवल विरोध की नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की थी।
भारत की संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को “वंदे मातरम्” को जन गण मन के समान दर्जा दिया।
यह निर्णय इस बात का प्रतीक था कि यह गीत केवल इतिहास नहीं, बल्कि हमारे वर्तमान और भविष्य की पहचान है।
आज भी जब यह गीत बजता है, हर भारतीय का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है।
आज जब भारत आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, “वंदे मातरम्” की भावना हमें याद दिलाती है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं होती —
वह आत्मविश्वास, परिश्रम और आत्मसम्मान में बसती है।
जैसे बंकिमचंद्र जी ने अपने शब्दों से भारत को जगाया था, वैसे ही हमें आज अपने कर्म से भारत को सशक्त बनाना है।
भारत की पहचान उसकी विविधता में एकता है।
“वंदे मातरम्” ने यह सिखाया कि हम चाहे किसी भी भाषा, क्षेत्र या धर्म से हों, हमारी आत्मा एक ही है — भारत माता की।
यह गीत हमें जोड़ता है, यह हमें याद दिलाता है कि भारत केवल भूमि का टुकड़ा नहीं — यह एक जीवंत, संवेदनशील माँ है।
150 साल बाद भी “वंदे मातरम्” की गूंज उतनी ही प्रभावशाली है जितनी उस दौर में थी।
यह गीत हमें बताता है कि मातृभूमि के प्रति प्रेम, समर्पण और सम्मान ही सच्ची देशभक्ति है।
> “जब तक भारत की धरती पर एक भी पुत्र साँस लेता रहेगा, ‘वंदे मातरम्’ की आवाज़ कभी मंद नहीं होगी।”
आज आवश्यकता है कि हम “वंदे मातरम्” की भावना को अपने कार्य, अपने व्यवहार और अपने विचारों में उतारें।
यही सच्चा राष्ट्र प्रेम है, यही भारत की आत्मा का उत्सव है।




