बागपत में सामने आई यह घटना केवल एक अपराधी की दुस्साहसिक हरकत नहीं, बल्कि जेल व्यवस्था और शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गहरा प्रश्नचिह्न है। कुख्यात अपराधी ज्ञानेंद्र ढाका, जो फिलहाल ललितपुर जेल में बंद है, द्वारा फोन पर एक स्कूल प्रबंधक को हत्या की धमकी देना इस बात का प्रमाण है कि जेलें आज भी अपराधियों के “संचालन केंद्र” बन चुकी हैं।
“दिन गिनना शुरू करो, तुझे मरवा डालूंगा” — यह एक वाक्य मात्र नहीं, बल्कि कानून-व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है। सवाल यह है कि एक कैदी के पास जेल के भीतर से मोबाइल फोन कैसे पहुंचा? क्या जेल प्रशासन इतनी ढीली निगरानी में है कि संगठित अपराधी अब वहीं से रंगदारी का नेटवर्क चला रहे हैं?
ज्ञानेंद्र ढाका का नाम पहले से ही रंगदारी, हत्या और वसूली जैसे गंभीर अपराधों में दर्ज है। उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों और उसकी संगति में आने वाले अपराधियों — जैसे सुनील राठी और नीरज बवाना — का उल्लेख यह स्पष्ट करता है कि यह कोई अलग-थलग घटना नहीं, बल्कि संगठित आपराधिक गठजोड़ का हिस्सा है।
ऐसे में यह आवश्यक है कि उत्तर प्रदेश सरकार और जेल प्रशासन इस घटना को सामान्य अपराध के रूप में न देखें, बल्कि जेल सुरक्षा प्रणाली की गहन समीक्षा करें। फोन कॉल की उत्पत्ति, जेल कर्मियों की भूमिका, और संचार माध्यमों की उपलब्धता की जांच अब केवल एक औपचारिकता नहीं रह गई है — यह प्रणाली की विश्वसनीयता का परीक्षण है।
समाज में भय और अराजकता फैलाने वाले अपराधियों के लिए जेल एक दंडस्थल होना चाहिए, न कि उनका “ऑपरेशन रूम।” यदि बंदी के हाथ से फोन नहीं छीने जा सके, तो यह न केवल शासन की कमजोरी है, बल्कि ईमानदार नागरिकों के विश्वास का हनन भी।
सरकार को चाहिए कि इस मामले में जेल अधीक्षक से लेकर स्थानीय पुलिस प्रशासन तक जवाबदेही तय की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी अपराधी जेल की चारदीवारी से बाहर किसी की जिंदगी और सुरक्षा से खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके।






