उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हालिया संदेश केवल एक प्रशासनिक घोषणा नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक प्रतिज्ञा है। कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर जब उन्होंने डालीबाग क्षेत्र की माफियाओं से मुक्त कराई गई भूमि पर गरीबों को आवास की चाबियाँ सौंपीं, तो यह घटना ‘आवास वितरण कार्यक्रम’ से कहीं अधिक अर्थ रखती थी। यह न्याय, नीति और नये उत्तर प्रदेश की तस्वीर थी — जहाँ सत्ता का लक्ष्य केवल शासन नहीं, बल्कि व्यवस्था में नैतिक संतुलन कायम करना है।
योगी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को अब प्रतीक नहीं, बल्कि व्यवहारिक परिणामों के रूप में देखा जा रहा है। जिस भूमि पर कभी अपराध और सत्ता के गठजोड़ का कब्जा था, आज वहीं गरीब परिवार अपने सपनों का घर बसा रहे हैं। यह दृश्य न केवल आर्थिक पुनर्वितरण का उदाहरण है, बल्कि सामाजिक न्याय की वह तस्वीर है जिसे उत्तर प्रदेश वर्षों से तलाश रहा था।
मुख्यमंत्री का यह कहना कि “जो माफिया की भाषा समझता है, उसे उसी भाषा में जवाब दिया जाएगा” — अपने आप में एक दृढ़ प्रशासनिक दर्शन है। यह दर्शन बताता है कि अब राज्य की प्राथमिकता भय नहीं, बल्कि विश्वास है।
जहां पहले अपराधी व्यवस्था को नियंत्रित करते थे, वहीं अब कानून व्यवस्था अपराधियों को नियंत्रित कर रही है।
योगी आदित्यनाथ का यह भी कहना कि “पूर्व की सरकारें माफियाओं के सामने नतमस्तक थीं”, केवल राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि जनता अब भूलने वाली नहीं। वह जानती है कि कौन अपराधियों को गले लगाता था और कौन जनता के हक के लिए संघर्ष करता है।
आज वही जनता इस बात की साक्षी है कि डालीबाग की करोड़ों की जमीन, जो कभी शक्ति और प्रभाव का प्रतीक मानी जाती थी, अब गरीबों के दीपोत्सव का स्थल बन गई है।
योगी सरकार का यह कहना कि “अब यूपी असीमित संभावनाओं वाला प्रदेश है” किसी अतिशयोक्ति से अधिक एक व्यावहारिक परिवर्तन का संकेत है। निवेश की दृष्टि से देखें तो 45 लाख करोड़ रुपये के प्रस्ताव केवल अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि सुरक्षा, भरोसे और प्रशासनिक स्थिरता का परिणाम हैं।
जो प्रदेश कभी दंगों और कर्फ्यू से पहचाना जाता था, अब उद्योग, शिक्षा और रोज़गार के केंद्र के रूप में उभर रहा है।
कार्तिक पूर्णिमा जैसे आध्यात्मिक पर्व पर दिया गया यह संदेश महज धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का विस्तार है — कि धर्म वही है जो व्यवस्था को मजबूत करे, और विकास वही जो न्याय के साथ जुड़ा हो। योगी का यह स्पष्ट कहना — “कानून के साथ रहो, वरना कानून का प्रहार झेलो” — नई शासन-व्यवस्था की रीढ़ बन चुका है।
सामाजिक मत स्पष्ट है कि माफियावाद केवल कानून का नहीं, समाज के नैतिक ताने-बाने का भी अपराध है। उत्तर प्रदेश जिस परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, उसमें राज्य सरकार की कठोरता तभी स्थायी प्रभाव छोड़ेगी जब यह नीति प्रशासन के निचले स्तर तक ईमानदारी से लागू हो।
माफियाओं से मुक्त कराई गई हर इंच भूमि केवल सरकारी संपत्ति नहीं, बल्कि जन-आस्था की पुनर्स्थापना है।
इसलिए अब वक्त है कि समाज भी यह तय करे—
क्या वह फिर से भय और भ्रष्टाचार के दौर में लौटना चाहता है,
या उस उत्तर प्रदेश को देखना चाहता है जहाँ गरीबों के घरों में दीप जलें और अपराधियों के अंधेरे सदा के लिए बुझ जाएं।






