फर्जीवाड़े का साम्राज्य या प्रशासनिक मौन का संरक्षण?

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– अवधेश मिश्रा पर मजिस्ट्रेट जांच के बाद भी कार्रवाई ठप, डीएम के आदेशों को क्यों दबा दिया गया?

फर्रुखाबाद।
नवाबगंज क्षेत्र के चांदपुर स्थित वकील अवधेश कुमार मिश्रा द्वारा संचालित एस.के.एम. इंटर कॉलेज और उससे जुड़ी शैक्षिक संस्थाओं के फर्जीवाड़े का मामला अब तूल पकड़ चुका है। त्रिस्तरीय मजिस्ट्रेट जांच में गड़बड़ी और दस्तावेजी हेराफेरी की पुष्टि होने के बावजूद आज तक प्रशासनिक कार्रवाई का अभाव गहरे सवाल खड़े कर रहा है—आखिर किसके संरक्षण में यह पूरा नेटवर्क फल-फूल रहा है?

मजिस्ट्रेट जांच में खुला फर्जीवाड़ा, पर प्रशासन मौन

सूत्रों के अनुसार, जांच में यह स्पष्ट हुआ कि एस.के.एम. इंटर कॉलेज में प्रबंधन संबंधी दस्तावेजों, मान्यता पत्रों और भवन स्वामित्व से जुड़े कई दस्तावेज़ जाली पाए गए। इसके बावजूद जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) नरेंद्र पाल सिंह ने दो-दो जिलाधिकारियों के लिखित आदेशों के बावजूद प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई।

शिक्षा विभाग के सूत्र बताते हैं कि तत्कालीन डीआईओएस डॉ. आदर्श कुमार त्रिपाठी ने अवधेश मिश्रा के कॉलेज को आजीवन डीवार घोषित कर परीक्षा केंद्र बनाए जाने की अनुशंसा निरस्त की थी। परंतु वर्तमान डीआईओएस और उनके सहयोगियों—राजेश अग्निहोत्री व राजीव यादव—ने न केवल इस कॉलेज को पुनः “सक्रिय” दिखाया, बल्कि यहां जवाहर नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा भी कराई गई।

‘कृष्णा पब्लिक स्कूल’ से लेकर ‘एसकेएम महिला डिग्री कॉलेज’ तक फर्जी इमारतों का खेल

बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) की रिपोर्ट के अनुसार, कृष्णा पब्लिक स्कूल का फर्जीवाड़ा साबित हो चुका है। इसके बावजूद, इसी भवन को दर्शाकर फ़र्ज़ी तौर पर एस.के.एम. महिला डिग्री कॉलेज की स्थापना, कर मान्यता प्राप्त कर ली गई—और हैरानी की बात यह कि आगामी परीक्षाओं के लिए इसे केंद्र भी घोषित कर दिया गया है।

शिक्षा विभाग के सूत्रों का कहना है कि कॉलेज की फाइल में भवन संबंधी प्रमाणपत्र और निरीक्षण रिपोर्ट में स्पष्ट विसंगतियां हैं। यह भी आरोप है कि संबंधित लिपिकों ने “अनुमोदन फाइलों” में बदलाव कर दस्तावेज़ों को “वैध” दिखाया गया।

प्रशासनिक मिलीभगत या राजनीतिक दबाव?

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अवधेश मिश्रा—जो स्वयं कई मुकदमों में अभियुक्त हैं और फर्जी रेप केस बनवाने के मामलों में चर्चित हैं—आज भी जिला प्रशासन के संरक्षण में सक्रिय दिखाई देते हैं। सूत्रों के अनुसार, मिश्रा न केवल स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के साथ संपर्क में हैं बल्कि कुछ प्रभावशाली लोगों की शह पर शिक्षा संस्थानों से लेकर न्यायालय तक अपनी पकड़ बनाए हुए हैं।

यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान में अवधेश मिश्रा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में योगी सरकार के ही निर्णयों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं, जबकि दूसरी ओर उन्हें राज्य सरकार के ही अधिकारियों से अप्रत्यक्ष सहयोग मिलता दिख रहा है। यह विरोधाभास शासन की “जीरो टॉलरेंस” नीति पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

डीएम के आदेशों की अनदेखी—संलिप्त अफसरों की भूमिका पर भी सवाल

फर्रुखाबाद के दो पूर्व जिलाधिकारियों द्वारा जांच रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे। इसके बावजूद आज तक कार्रवाई नहीं होना डीआईओएस कार्यालय की भूमिका को संदिग्ध बनाता है। विशेष रूप से डीआईओएस नरेंद्र पाल सिंह और उनके अधीनस्थ लिपिकों की भूमिका जांच के घेरे में आ सकती है।
शिक्षा जगत के जानकारों का कहना है कि यदि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होती है तो जिले के कई प्रभावशाली अफसरों और शिक्षा माफिया के गठजोड़ का पर्दाफाश होगा।
जानकारी के अनुसार, यह पूरा मामला अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में लाया गया है। शासन स्तर से विशेष सचिव के माध्यम से जांच की मांग उठाई गई है। माना जा रहा है कि उच्च स्तरीय जांच शुरू होने पर कई बड़े नाम और विभागीय अधिकारी भी जांच के दायरे में आएंगे।

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