लखनऊ। राजधानी की हवा अब खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। दिवाली के बाद लखनऊ की आबोहवा उम्मीद से कहीं ज्यादा बीमार पाई गई है। रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन सेंटर (आरएसएसी) के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में सामने आया कि शहर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 से ऊपर चला गया है, जो बेहद हानिकारक श्रेणी में आता है।
डॉ. सुधाकर शुक्ला की अगुवाई में वैज्ञानिकों की टीम ने 21 से 24 अक्तूबर के बीच 110 वार्डों और 8 जोनों में 282 स्थानों पर हवा की गुणवत्ता मापी। जांच में पाया गया कि अलीगंज, अमीनाबाद, चौक और विकासनगर जैसे घनी आबादी वाले इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। वहीं तॉलकटोरा औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर भयावह रूप ले चुका है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दिवाली के दिन छोड़े गए पटाखों ने राजधानी की हवा को और जहरीला बना दिया। शोर स्तर भी 893 डेसिबल तक पहुंच गया, जो सामान्य सीमा से कई गुना अधिक है। यह स्थिति बुजुर्गों, दिल के मरीजों और पशु-पक्षियों के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकती है।
लखनऊ अब लगभग 500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यहां 40 लाख से अधिक लोग निवास करते हैं। बढ़ती आबादी, वाहनों की संख्या में इजाफा और अनियंत्रित निर्माण कार्यों ने वायु गुणवत्ता को और बिगाड़ दिया है।
सर्वे में यह भी सामने आया कि पहले ‘साफ हवा’ के लिए मशहूर कैंट एरिया की स्थिति भी अब खराब हो चुकी है। वैज्ञानिकों ने चेताया कि प्रदूषण घटाने के लिए कृत्रिम बारिश का विकल्प अपनाना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि केवल छह एक्यूआई मॉनिटरिंग सेंटर पर्याप्त नहीं हैं। शहर के हर इलाके में नए मॉनीटरिंग स्टेशन लगाए जाने चाहिए, ताकि असली प्रदूषण स्तर का पता चल सके। वैज्ञानिकों ने नागरिकों से अपील की है कि वे प्रदूषण नियंत्रण में भागीदारी निभाएं — पटाखों का सीमित प्रयोग करें, हरियाली बढ़ाएं और वाहनों के प्रदूषण की जांच नियमित कराएं।






