– अकेली पड़ी एसपी आरती सिंह हाईकोर्ट में खड़ी सरकार — माफिया अनुपम दुबे अभियान को लगा तगड़ा झटका
– सिपाही सचेद्र का करोड़ों में हुआ सौदा
– पूरे मामले में क्षेत्राधिकार पुलिस मोहम्मदाबाद नवाबगंज थाना अध्यक्ष नारायण पांडे और कई का खेल
फर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति (Zero tolerance policy) अब जिले में मज़ाक बनती जा रही है। जनपद में अपर पुलिस अधीक्षक संजय सिंह और सीओ अजय वर्मा पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उन्होंने न केवल वकील माफिया अवधेश मिश्रा को संरक्षण दिया बल्कि उसके नेटवर्क को प्रशासनिक स्तर पर मजबूत करने में भी भूमिका निभाई। को की 25 पन्ने की रिपोर्ट उच्च न्यायालय इलाहाबाद (High Court Allahabad) में चर्चा का विषय बनी हुई है जिसमें माफी अनुपम दुबे के साथ ही और कुख्यात अपराधी को बचाने की पुरजोर कोशिश हुई है।
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, माफिया अनुपम दुबे गैंग के खिलाफ चल रहे अभियान को भीतर से ही पंगु कर दिया गया। सूत्रों का दावा है कि सर्विलांस सेल फतेहगढ़ का एक सिपाही और कर्नलगंज चौकी का पूर्व इंचार्ज डांगी जो पहले माफिया तंत्र की गतिविधियों के खिलाफ मुखर था, अचानक खामोश हो गया — और उसके बाद जे.एन.वी. रोड स्थित लाखों की कीमत का प्लॉट और आलीशान मकान उसके नाम पर कराए जाने की चर्चा ज़ोरों पर है। बताया जा रहा है कि यह इनाम माफिया तंत्र की “सेवा” के बदले मिला है।
माफिया-अधिकारी गठजोड़ ने अनुपम दुबे विरोधी अभियान को दिया झटका
जिले में लंबे समय से अनुपम दुबे और अवधेश मिश्रा गैंग के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई चल रही थी, लेकिन अब वही पुलिस अधिकारी जिन पर कार्रवाई की कमान थी, उसी तंत्र के हितों की रक्षा में जुटे हैं। यह गठजोड़ न केवल जिले की कानून व्यवस्था पर ग्रहण लगा रहा है, बल्कि शासन की साख पर भी गहरी चोट कर रहा है।
जानकारों का कहना है कि संजय सिंह और अजय वर्मा की जोड़ी, माफिया अवधेश मिश्रा के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क में है। कई मामलों में उन्होंने आरोपी पक्ष के पक्ष में रिपोर्ट भेजी, जिससे सरकार की नीतिगत छवि धूमिल होती जा रही है।
एसपी आरती सिंह अकेली — मगर डटी हुईं
इस पूरे षड्यंत्र के बीच जिला पुलिस प्रमुख एसपी आरती सिंह अकेली नज़र आ रही हैं। सूत्र बताते हैं कि वे लगातार दबाव और हस्तक्षेप के बावजूद माफिया तंत्र के खिलाफ कठोर कार्रवाई के पक्ष में हैं। लेकिन उनके इर्द-गिर्द बैठे कुछ वरिष्ठ अधिकारी ही टांग खींचने में लगे हैं, जिससे निष्पक्ष जांच प्रभावित हो रही है।
हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि एसपी आरती सिंह के सामने अब प्रशासनिक ईमानदारी बनाम तंत्रीय भ्रष्टाचार की जंग खड़ी हो गई है। जिले के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि यदि शासन ने समय रहते इस मामले को नहीं संभाला, तो यह पूरा तंत्र अपराधियों की शरणस्थली बन जाएगा।
हाईकोर्ट तक गूंज सकता है मामला
यह मामला अब हाईकोर्ट तक पहुँचने की संभावना बताई जा रही है। न्यायिक सूत्रों के अनुसार, यदि इस पर स्वतः संज्ञान लिया गया, तो संजय सिंह, अजय वर्मा, नवाबगंज थाना अध्यक्ष अवध नारायण पांडे और संबंधित सिपाही सचेद्र सिंह की संपत्ति जांच के दायरे में आ सकती है।
जनता खुले तौर पर मांग कर रही है कि इस पूरे प्रकरण की एसटीएफ या विजिलेंस स्तर पर जांच हो, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि माफिया के इशारे पर पुलिस के भीतर कौन-कौन अधिकारी सक्रिय हैं।
माफिया तंत्र का ‘प्लान्ड इंफ्लुएंस’ — जनपद में अपराध पर नियंत्रण कमजोर
युवाओं और समाजसेवियों का कहना है कि जिले में अपराध पर नियंत्रण की जगह अब ‘कंट्रोल्ड नेरेटिव’ चलाया जा रहा है। जो अधिकारी माफिया के खिलाफ बोलते हैं, उन्हें ट्रांसफर या हाशिये पर भेज दिया जाता है।
वहीं, जो लोग “गैंग के हित में रिपोर्ट” भेजते हैं, वे पुरस्कृत किए जाते हैं — जैसे सचेद्र का मामला।
शासन से जांच की मांग
अब जनपद में यह मुद्दा जनता का बन चुका है। लोगों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए और उन अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो जो माफिया-अधिकारी गठजोड़ को संरक्षित कर रहे हैं। कानून व्यवस्था पर जनता का भरोसा तभी लौटेगा जब “टॉलरेंस नीति” को “टॉलरेंस ऑफ करप्शन” बनने से बचाया जाएगा।


