लखनऊ। बिहार विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के रामगढ़ सीट से प्रत्याशी पिंटू यादव को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) द्वारा बिना शर्त समर्थन दिए जाने से सियासी तापमान बढ़ गया है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का यह फैसला न केवल बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर रहा है, बल्कि उत्तर प्रदेश की भावी सियासत पर भी इसका असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
गौरतलब है कि एआईएमआईएम ने वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन किया था और उस चुनाव में पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि इस बार बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, बावजूद इसके ओवैसी की पार्टी ने बसपा उम्मीदवार को समर्थन देकर भविष्य में संभावित गठबंधन की संभावना को जीवित रखा है।
सियासी जानकारों का कहना है कि बिहार की तरह ही उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर विपक्षी दलों के बीच हमेशा खींचतान रहती है। यूपी में बसपा के लिए मुस्लिम समुदाय का समर्थन बेहद अहम माना जाता है, क्योंकि इसके बिना पार्टी को चुनावी सफलता हासिल कर पाना मुश्किल है। एआईएमआईएम के साथ बढ़ते संबंध बसपा के लिए मुस्लिम मतदाताओं में दोबारा पैठ बनाने का अवसर बन सकते हैं।
हालांकि, बसपा सुप्रीमो मायावती ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वर्ष 2027 का विधानसभा चुनाव बसपा अकेले लड़ेगी, लेकिन पिछले चुनावों के परिणामों ने पार्टी के वोट बैंक में बड़ी गिरावट दर्ज कराई है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर बसपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। उस दौरान बसपा ने 21 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक पार्टी से दूर होता दिखा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बसपा के लिए यह समर्थन केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी इसका असर देखने को मिलेगा। बदले हालात में बसपा के लिए एआईएमआईएम जैसा दल भविष्य की सियासी रणनीति में महत्वपूर्ण सहयोगी साबित हो सकता है, खासकर तब जब पार्टी अपने पारंपरिक वोट बैंक को बचाने की चुनौती से जूझ रही है।






