सरदार पटेल जयंती पर मैदान में बीजेपी, खिसकते कुर्मी वोट बैंक को साधने की बड़ी कवायद

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– 31 अक्टूबर से 6 दिसंबर तक चलेगा देशव्यापी अभियान, यूपी पर रहेगा खास फोकस

– लगातार सपा की ओर बढ़ते कुर्मी प्रेम से बढ़ी चिंता
शरद कटियार
लखनऊ।
विधानसभा चुनाव की आहट के बीच भारतीय जनता पार्टी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती को लेकर 31 अक्टूबर से 6 दिसंबर तक बड़े स्तर पर अभियान चलाने की तैयारी पूरी कर ली है। पार्टी इसे “राष्ट्रीय एकता पर्व” के रूप में मना रही है, लेकिन जानकारों का मानना है कि इस आयोजन के पीछे भाजपा का असली उद्देश्य कुर्मी समुदाय के बीच अपनी राजनीतिक पकड़ को फिर मजबूत करना है, जो पिछले कुछ वर्षों से समाजवादी पार्टी (सपा) की ओर झुकाव दिखा रहा है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि : कुर्मी वोट बैंक का समीकरण

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुर्मी समाज की भूमिका निर्णायक मानी जाती है। राज्य में लगभग 7 से 9 प्रतिशत आबादी कुर्मी समुदाय की है, जो कुल ओबीसी जनसंख्या का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। यह समुदाय पूर्वांचल, अवध और बुंदेलखंड के 150 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में प्रभावशाली भूमिका निभाता है।
2014 और 2017 में भाजपा ने गैर-यादव पिछड़ों के समर्थन से रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी। लोकनीति-सीएसडीएस के 2017 सर्वे के मुताबिक, गैर-यादव ओबीसी में भाजपा को 60 प्रतिशत तक वोट शेयर मिला था।
लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा घटकर 47 प्रतिशत तक सिमट गया। वहीं सपा ने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फार्मूले के ज़रिए इस वर्ग में अपनी पकड़ 28 से बढ़ाकर 38 प्रतिशत तक कर ली।

भाजपा की चिंता : सपा का पीडीए फार्मूला बन रहा चुनौती

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पीडीए(पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को लेकर जोरदार अभियान चलाया।
इसका असर यह रहा कि कुर्मी, मौर्य, पटेल, निषाद जैसे समुदायों में सपा की पैठ बढ़ी।
विशेष रूप से मिर्जापुर, प्रतापगढ़, बांदा, कौशांबी, फतेहपुर, कानपुर देहात, हरदोई और सीतापुर जैसे जिलों में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कई कुर्मी नेताओ के भाजपा से दूर होने से पार्टी के भीतर पिछड़ों में असंतोष का संदेश गया है।वहीं मौजूदा नेता अपनी पकड़ नहीं बना सके।
अब भाजपा सरदार पटेल के आदर्शों के सहारे “एकता” और “राष्ट्रनिर्माण” की छवि को उभारते हुए कुर्मी समाज में फिर से जुड़ाव बनाने की कोशिश कर रही है।
31 अक्टूबर से शुरू हो रहा “एकता यात्रा अभियान” भाजपा का सबसे बड़ा जनसंपर्क कार्यक्रम माना जा रहा है।
योजना के मुताबिक—
हर विधानसभा क्षेत्र में 10 किलोमीटर की पदयात्रा आयोजित होगी।
सरदार पटेल की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण और जनसंवाद कार्यक्रम होंगे।
‘एकता का संकल्प’ रथ निकाले जाएंगे, जो 6 दिसंबर तक सभी जिलों में पहुंचेंगे।
भाजपा के ओबीसी मोर्चे को “गांव-गांव पटेल, हर दिल में भारत” नारे के साथ सक्रिय किया गया है।
भाजपा सूत्रों के अनुसार, यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि कार्यक्रम नहीं बल्कि राजनीतिक ‘रीब्रांडिंग मिशन’ है — ताकि कुर्मी वर्ग में भाजपा की पुरानी पकड़ दोबारा कायम हो सके।
उत्तर प्रदेश मे कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहाँ 2022 में भाजपा को कुर्मी वोटों में हर जिले में 3-6% तक की गिरावट झेलनी पड़ी है, जो कई सीटों पर हार-जीत का निर्णायक अंतर बन गई।
भाजपा ने सरदार वल्लभभाई पटेल को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक मानते हुए हमेशा अपने वैचारिक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कुर्मी समाज में सरदार पटेल को एक “स्वाभिमान प्रतीक” के रूप में मान्यता है, और यही कारण है कि भाजपा इस पहचान को फिर से भुनाना चाहती है।
राजनीति विशेषज्ञ प्रो. एस.आर. तिवारी के अनुसार —
> “यह आयोजन भाजपा की वैचारिक री-कनेक्ट रणनीति का हिस्सा है। पार्टी सरदार पटेल के ज़रिए कुर्मी समाज में यह संदेश देना चाहती है कि उसका सम्मान और प्रतिनिधित्व भाजपा के साथ ही सुरक्षित है।”
सपा ने भाजपा के इस अभियान को “राजनीतिक ड्रामा” बताया है।
सपा प्रवक्ता सुनील यादव साजन का कहना है—
> “भाजपा अब सरदार पटेल को याद कर रही है क्योंकि उसे कुर्मी समाज से दूर होते कदमों का डर है। सपा ने जो सम्मान पिछड़ों को दिया, भाजपा ने उसे केवल नारे तक सीमित रखा।”
आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कुर्मी वोट बैंक को लेकर दोनों दलों के बीच होड़ तेज है।
भाजपा “एकता यात्रा” से अपने पारंपरिक वोटरों को वापस लाने की कोशिश में है, जबकि सपा पीडीए फार्मूले से सामाजिक गठजोड़ को मजबूत कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि भाजपा कुर्मी समाज में खोया विश्वास वापस नहीं जीत पाई, तो 2027 में उसका प्रदर्शन 2022 से भी कमजोर हो सकता है।

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