लखनऊ। प्रदेश सरकार ने हाइब्रिड वाहनों पर दी जा रही सब्सिडी को समाप्त करने का बड़ा फैसला लिया है। कारण यह कि जिन वाहनों को पर्यावरण हितैषी मानकर प्रोत्साहन दिया जा रहा था, वे उम्मीद से कहीं ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं। एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब केवल शून्य उत्सर्जन तकनीक वाले इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को ही सब्सिडी दी जाएगी।
प्रदेश सरकार ने हाल के वर्षों में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए पंजीकरण शुल्क और रोड टैक्स में 100 प्रतिशत सब्सिडी का प्रावधान किया था। लेकिन आंकड़ों ने सरकार की नीति पर सवाल खड़े कर दिए। बीते एक वर्ष में जहां प्रदेश में 14,375 ईवी कारें पंजीकृत हुईं, वहीं 20,568 हाइब्रिड और स्ट्रांग हाइब्रिड वाहनों की बिक्री दर्ज की गई। यानी सब्सिडी का बड़ा हिस्सा उन्हीं वाहनों को मिल रहा था जो पूर्ण रूप से पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं।
विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, हाइब्रिड वाहन पेट्रोल इंजन और बैटरी दोनों पर चलते हैं। इनमें इंजन स्वयं बैटरी को चार्ज करता है। वहीं, प्लग-इन हाइब्रिड कारों में बड़ी बैटरी होती है, जिसे अलग से चार्ज किया जाता है, लेकिन वे भी सीमित दूरी तक ही इलेक्ट्रिक मोड पर चल पाती हैं। आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि इलेक्ट्रिक वाहन, हाइब्रिड की तुलना में 70 प्रतिशत कम प्रदूषण फैलाते हैं और बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
पिछले वर्ष प्रदेश में जहां हाइब्रिड वाहनों की बाजार हिस्सेदारी मात्र 2.7 प्रतिशत थी, वहीं सब्सिडी के चलते अब यह बढ़कर 59 प्रतिशत तक पहुंच गई। इस असंतुलन और प्रदूषण स्तर में वृद्धि को देखते हुए सरकार ने निर्णय लिया है कि अब स्ट्रांग हाइब्रिड और प्लग-इन हाइब्रिड वाहनों को किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी।
सरकार का मानना है कि यह सुधार प्रदेश की शून्य कार्बन उत्सर्जन नीति को और मजबूती देगा। हरियाणा, राजस्थान और चंडीगढ़ पहले ही हाइब्रिड वाहनों पर दी जाने वाली 25 से 50 प्रतिशत सब्सिडी वापस ले चुके हैं। अब उत्तर प्रदेश ने भी इसी दिशा में कदम बढ़ाया है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह निर्णय इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को रफ्तार देगा और आने वाले वर्षों में स्वच्छ ऊर्जा आधारित परिवहन प्रणाली के लक्ष्य को हासिल करने में मददगार साबित होगा।





