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Saturday, October 25, 2025

20 साल बाद फिर ‘पुराने रंग’ में लौटेंगी बसपा सुप्रीमो मायावती

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– दलित-ब्राह्मण गठजोड़ के सहारे बीएसपी ने साधा 2027 का समीकरण
– कपिल मिश्रा और आनंद की जोड़ी के जरिए युवाओं पर निशाना

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती एक बार फिर अपने पुराने दलित-ब्राह्मण समीकरण के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने मंडल और जिला स्तर पर संगठन को सक्रिय करने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती अब उसी फार्मूले को दोहराने की कोशिश में हैं, जिसने उन्हें 2007 में उत्तर प्रदेश की सत्ता तक पहुंचाया था।
राजनीतिक हलकों में इन दिनों चर्चा है कि बसपा 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए कपिल मिश्रा और आकाश आनंद की जोड़ी को आगे बढ़ा सकती है।
माना जा रहा है कि मायावती इस जोड़ी के जरिये दलित और ब्राह्मण दोनों वर्गों में पैठ बनाने की कोशिश करेंगी।पार्टी सूत्रों के अनुसार, आकाश आनंद को युवाओं का चेहरा बनाकर पार्टी नए सिरे से जोश भरना चाहती है, वहीं कपिल मिश्रा की छवि संगठन और रणनीति के लिहाज से उपयोगी मानी जा रही है।
मायावती की हालिया सक्रियता ने आगामी पंचायत चुनावों पर भी राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है।
करीब 10 करोड़ वोटरों वाले इस बड़े चुनाव में सरकार को व्यापक तैयारी करनी पड़ती है।
राजनीतिक दल भी इस चुनाव को अपने जनाधार की परीक्षा मानते हैं।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, यदि पंचायत चुनाव समय पर होते हैं, तो वे आगामी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बसपा के लिए ‘ग्राउंड टेस्ट’ साबित हो सकते हैं।
वरिष्ठ विश्लेषकों का मानना है कि बसपा ने अभी पूरी रणनीति का खुलासा नहीं किया है।
पार्टी फिलहाल संगठन पुनर्गठन और क्षेत्रीय समीकरणों के आकलन में जुटी है।
यदि मायावती अपने पुराने समीकरण को सफलतापूर्वक दोहराने में कामयाब होती हैं, तो 2027 का चुनाव फिर से दिलचस्प हो सकता है।
बीएसपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि “पिछले कुछ महीनों में बहनजी ने लगातार जिलों के नेताओं से फीडबैक लिया है।
अब लक्ष्य है— नीचे से ऊपर तक संगठन को जीवित करना।
यही रणनीति 2007 में भी अपनाई गई थी, जब दलित और ब्राह्मण वोट बैंक के एकजुट होने से बीएसपी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था।”
बीएसपी की बढ़ती सक्रियता ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों की चिंता बढ़ा दी है।
कांग्रेस का मानना है कि मायावती के मैदान में उतरने से ब्राह्मण वोटों में बिखराव हो सकता है, जबकि सपा को डर है कि पिछड़ा और दलित वोट बैंक में सेंध लग सकती है।

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