फर्रुखाबाद-कन्नौज के ब्राह्मणों का गौरव — शिक्षा, संस्कृति और सेवा से बनी पहचान

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– पंडित नंदराम द्विवेदी से लेकर आचार्य डॉ. कृष्णकांत त्रिपाठी अक्षर तक — जिन्होंने ज्ञान, कर्म और संस्कृति से देश में रोशन किया जिले का नाम
– राजनीति में पंडित विमल प्रसाद तिवारी को वीडियो किया जाएगा याद
शरद कटियार
फर्रुखाबाद।
आज जब देश “नए भारत” के निर्माण की बात कर रहा है, तब यह याद करना जरूरी है कि उस भारत की बुनियाद ज्ञान और संस्कारों पर रखी गई थी — और इस ज्ञान परंपरा को सबसे पहले आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया था फर्रुखाबाद और कन्नौज के ब्राह्मण समाज ने।
आज़ादी के बाद का दशक — सन् 1950 का वह समय जब शिक्षा ग्रामीण भारत के लिए अभी सपना थी, तब जनपद फर्रुखाबाद और कन्नौज के शिक्षा-पुरुष, मालवीय समान व्यक्तित्व स्वर्गीय पंडित नंदराम द्विवेदी ने इस अभाव के युग में ज्ञान की दीपशिखा जलाई।

पंडित नंदराम द्विवेदी — जिन्होंने शिक्षा को धर्म बना दिया

स्वर्गीय पंडित नंदराम द्विवेदी ने सबसे पहले स्वामी रामानंद बालक इंटर कॉलेज की स्थापना की।
इसके बाद शिक्षा के प्रचार-प्रसार को अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बना लिया।
उन्होंने अपने प्रयासों से न केवल फर्रुखाबाद बल्कि कन्नौज जनपद में भी शिक्षा की अलख जगाई और एक-एक कर अनेक विद्यालयों की स्थापना की —

📘 महात्मा गांधी इंटर कॉलेज मड़पुरा (कन्नौज)
📘 ऋषिभूमि इंटर कॉलेज सौरिख (कन्नौज)
📘 जवाहरलाल नेहरू इंटर कॉलेज सखराबा (कन्नौज)
📘 बाबा गंगादास जूनियर हाई स्कूल सौरिख
📘 रामदुलारी गर्ल्स जूनियर हाई स्कूल मणिपुरा (कन्नौज)
📘 स्वामी बेधड़क हार सेकेंडरी स्कूल (नदियान, गुरसां)
📘 कर्नल ब्रह्मानंद इंटर कॉलेज शुक्रुल्लापुर (फर्रुखाबाद)
📘 रामानंद बालिका इंटर कॉलेज (फर्रुखाबाद)
📘 बाबा चंद्रसेन हार सेकेंडरी स्कूल (फर्रुखाबाद)

इनके अलावा उन्होंने दोनों जनपदों में लगभग दो दर्जन से अधिक शिक्षण संस्थान स्थापित किए और लंबे समय तक मदन मोहन कनौड़िया बालिका इंटर कॉलेज फर्रुखाबाद के प्रबंधक पद पर रहते हुए शिक्षा का संचालन किया।
उनका जीवन यह प्रमाण था कि ब्राह्मण केवल ज्ञान का साधक नहीं, बल्कि समाज के उत्थान का संवाहक भी है।
फर्रुखाबाद के ब्राह्मण समाज की चर्चा बिना पंडित विमल तिवारी के अधूरी है।
उनका राजनीतिक जीवन एक आदर्श की तरह रहा।
उन्होंने न केवल फर्रुखाबाद का नेतृत्व संभाला, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी नीतियों और नैतिकता से पहचान बनाई।
उनकी राजनीतिक शिष्या श्रीमती शीला दीक्षित, जिन्होंने तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, स्वयं कहती थीं कि —

> “अगर विमल तिवारी न होते, तो राजनीति में संस्कार और सादगी का अर्थ नहीं समझ पाती।”

उनके कार्यकाल ने फर्रुखाबाद को न केवल राजनीतिक रूप से मज़बूत किया, बल्कि देशभर में जिले की एक नई पहचान बनाई —
एक ऐसे जनपद की, जहाँ नेतृत्व का अर्थ था ईमानदारी, मर्यादा और विचारशीलता।
आधुनिक समय में यदि फर्रुखाबाद का नाम किसी व्यक्ति ने राष्ट्रीय और सांस्कृतिक स्तर पर चमकाया है, तो वह हैं आचार्य डॉ. कृष्णकांत त्रिपाठी ‘अक्षर’।
आयुर्वेद, ज्योतिष, संस्कृत, भारतीय संस्कृति और साहित्य — इन सभी क्षेत्रों में उन्होंने अपनी गहरी विद्वत्ता और साधना का परिचय दिया है।

लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, फर्रुखाबाद और हरदोई में उनके सक्रिय कार्यालय और शोध संस्थान हैं।
वे न केवल रामनगरिया मेले जैसे ऐतिहासिक आयोजनों के नियमित प्रमुख वक्ता रहे हैं,
बल्कि अनेक राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारतीय परंपरा और विज्ञान पर व्याख्यान देकर फर्रुखाबाद की सांस्कृतिक पहचान को नई ऊँचाइयाँ दी हैं।
हरदोई और फर्रुखाबाद का ब्राह्मण समाज हर वर्ष उन्हें सम्मानित करता है,
क्योंकि उन्होंने ब्राह्मणत्व को केवल जातीय गौरव नहीं, बल्कि मानवता और विद्या के विस्तार का माध्यम बनाया।
उनके शिष्य और अनुयायी पूरे देश में हैं, जिनमें अनेक शिक्षाविद, पत्रकार, वैदिक आचार्य और योग विशेषज्ञ शामिल हैं।
फर्रुखाबाद और कन्नौज के ब्राह्मण समाज का इतिहास केवल पुरोहिताई तक सीमित नहीं रहा।
यह समाज विद्यालय बनाता है, संस्कार सिखाता है, समाज जोड़ता है और संस्कृति बचाता है।
पंडित नंदराम द्विवेदी से लेकर आचार्य कृष्णकांत त्रिपाठी अक्षर तक की यात्रा यह बताती है कि
यह भूमि केवल अध्यापन की नहीं, बल्कि आदर्श निर्माण की भूमि है।
ब्राह्मण समाज का यही योगदान फर्रुखाबाद को वह सांस्कृतिक गरिमा देता है
जिसके कारण यहाँ की मिट्टी में आज भी विद्या, तप और करुणा की सुगंध रची-बसी है।
आज जब राजनीति, भोग और भ्रामक आधुनिकता ने जीवन के मूल्यों को पीछे छोड़ दिया है,
तब फर्रुखाबाद के ये ब्राह्मण विभूतियाँ हमें यह स्मरण कराती हैं कि
संस्कार ही सभ्यता की आत्मा हैं।
शिक्षा, संस्कृति और सेवा — यही त्रिवेणी किसी समाज को महान बनाती है।

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