– 200 मीटर पर रेलवे ट्रैक और स्कूल फिर कैसे मिल गया लाइसेंस? उच्चस्तरीय जांच की मांग तेज़
फर्रुखाबाद।
थाना नवाबगंज क्षेत्र के ग्राम शुक्रल्लापुर में स्थित पी एंड ए वायो एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के बायोडीज़ल प्लांट में शनिवार की रात लगी भीषण आग ने न केवल पूरे इलाके को दहला दिया, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्ट अनुमति प्रक्रिया की पोल खोल दी है।
धधकती लपटें, सिलेंडरों के धमाके और मीलों तक फैला धुआँ — इस भयावह दृश्य ने यह साबित कर दिया कि यह सिर्फ हादसा नहीं, बल्कि नियमों की अनदेखी से जन्मी आपदा थी।
पता चला है कि इस प्लांट के पास विस्फोटक पदार्थ (Explosive Material) के भंडारण और उपयोग की कोई बैध एन ओ सी नहीं थी।
बायोडीज़ल रिफाइनरी में उपयोग होने वाले रसायन — मेथेनॉल, सोडियम मिथॉक्साइड, और ग्लिसरीन — सभी ज्वलनशील और विस्फोटक श्रेणी में आते हैं।
भारत के पेट्रोलियम एक्ट 1934 और Explosives Rules 2008 के तहत ऐसे किसी भी संयंत्र के संचालन के लिए निम्न अनुमतियाँ अनिवार्य हैं पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) की स्वीकृति होतीं हैं।फायर सेफ्टी NOC जिला फायर अधिकारी से और पर्यावरणीय मंजूरी (EC) प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से 500 मीटर की सुरक्षा परिधि में स्कूल, आबादी या रेलवे लाइन न होने की शर्त होतीं हैं।
लेकिन पी एंड ए वायो एनर्जी प्रा. लि. ने इनमें से कोई भी औपचारिक अनुमति सार्वजनिक नहीं की।
सूत्र बताते हैं कि यह यूनिट स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दबाव में लाइसेंस प्राप्त कर ली गई थी।
इस प्लांट से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर रेलवे ट्रैक गुजरता है, जिस पर हर घंटे पैसेंजर और मालगाड़ियाँ चलती हैं।
उसी परिधि में एक सरकारी प्राइमरी स्कूल और जूनियर हाई स्कूल भी स्थित हैं, जहाँ रोज़ सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं।
> “किसी भी ज्वलनशील रासायनिक यूनिट को रेलवे ट्रैक, शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल या घनी आबादी से कम से कम 500 मीटर दूर होना आवश्यक है।”
यह प्रशासनिक मंजूरी अब भ्रष्टाचार और पक्षपात की गंध देने लगी है।
प्लांट के डायरेक्टर अवधेश कोसल और ऋतिक कोसल,
कायमगंज के चर्चित तंबाकू व्यवसायी परिवार से हैं।
दोनों ने कुछ वर्ष पूर्व बायोडीज़ल उत्पादन के नाम पर कंपनी बनाई थी जिसका रजिस्ट्रेशन लखनऊ में किया गया था।
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि कंपनी ने पिछले वर्ष ही उत्पादन शुरू किया था,
लेकिन ना तो फायर विभाग, ना ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नियमित निरीक्षण किया।
शनिवार की रात करीब 7:30 बजे आग लगी।
तीन दमकल गाड़ियाँ मौके पर पहुँचीं, लेकिन सिर्फ 40 मिनट में पानी खत्म हो गया।
आग इतनी तेज़ थी कि अंदर रखे छोटे-छोटे गैस सिलेंडर और ड्रम लगातार फटते रहे।
आसपास के पाँच गाँवों तक विस्फोट की आवाज़ें सुनाई दीं।
रेलवे प्रशासन ने तत्काल ट्रैक से गुजर रही पैसेंजर ट्रेन को रोककर विपरीत दिशा में निकालने का निर्णय लिया,
वरना एक बड़ी त्रासदी टलती नहीं।
आग बुझाने के दौरान फायर विभाग को यह देखकर हैरानी हुई कि
> “प्लांट के अंदर कोई सेफ्टी सिस्टम, कोई फायर हाइड्रेंट और कोई सेफ्टी वाल्व मौजूद नहीं था।”
Explosives Act, 1884 और Environment Protection Act, 1986 के तहत
यदि कोई व्यक्ति बिना अनुमत NOC या सुरक्षा अनुमति के
ज्वलनशील पदार्थों का भंडारण या प्रसंस्करण करता है,
तो यह संज्ञेय अपराध है,
जिसमें अधिकतम 5 वर्ष का कारावास और ₹10 लाख तक जुर्माना हो सकता है।
प्रशासन ने अब तक न तो किसी अधिकारी को निलंबित किया,
न ही डायरेक्टरों के खिलाफ कोई FIR दर्ज की है।
यह चुप्पी खुद एक बड़ा सवाल बन चुकी है।
यदि यह आग दिन में लगती, जब स्कूल चल रहे होते,
तो शायद सैकड़ों बच्चों की जान खतरे में पड़ जाती।
लोगों ने प्रशासन से यह मांग करता है कि पी एंड ए वायो एनर्जी प्रा. लि. की स्थापना से लेकर लाइसेंस जारी होने तक की प्रक्रिया की उच्चस्तरीय जांच हो। जिलाधिकारी और फायर विभाग यह स्पष्ट करें कि
किस अधिकारी ने बिना NOC के संचालन की अनुमति दी।
कंपनी डायरेक्टरों अवधेश कोसल और ऋतिक कोसल पर एक्सपलोसिव्स रूल्स के उल्लंघन में एफ आई आर दर्ज की जाए।रेलवे और शिक्षा विभाग इस क्षेत्र को तत्काल सेफ ज़ोन घोषित करें
ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोहराई न जाए।
यह आग बुझ गई,
लेकिन उसके धुएँ में प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्ट अनुमति और संवेदनहीन व्यवस्था का चेहरा साफ़ दिख गया है।
अगर अब भी जांच केवल “औपचारिकता” बनकर रह गई,
तो अगली बार यह आग किसी और गाँव, किसी और स्कूल को निगल जाएगी।






