नई दिल्ली। अक्तूबर को राजधानी दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सैन्य योगदान देने वाले देशों (यूएनटीसीसी) के प्रमुखों के सम्मेलन को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत के लिए शांति स्थापना कोई विकल्प नहीं बल्कि एक आस्था का विषय है। आज़ादी के बाद से ही भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मिशन के साथ मजबूती से खड़ा रहा है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि शांति स्थापना केवल सैन्य मिशन नहीं बल्कि एक साझा जिम्मेदारी है, जो यह याद दिलाती है कि संघर्ष और हिंसा से ऊपर मानवता है। उन्होंने कहा कि जब युद्ध और अभाव से पीड़ित लोग ब्लू हेल्मेट्स को देखते हैं, तो उन्हें यह भरोसा होता है कि दुनिया ने उन्हें भुलाया नहीं है।
राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन का मुद्दा भी जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने कहा कि आज कुछ देश खुलेआम अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, कुछ उन्हें कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कुछ अपने नियम बनाकर अगली सदी पर दबदबा जमाना चाहते हैं। भारत ऐसी परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था को सशक्त बनाए रखने और पुरानी वैश्विक संरचनाओं में सुधार की वकालत करता रहेगा।
रक्षा मंत्री ने बताया कि पिछले दशकों में करीब 2,90,000 भारतीय सैनिकों ने 50 से अधिक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में अपनी सेवाएं दी हैं। कांगो, कोरिया, दक्षिण सूडान और लेबनान जैसे देशों में भारतीय सैनिक, पुलिस और चिकित्साकर्मी हमेशा मानवता की रक्षा के लिए कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करते रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत का यह योगदान बलिदान से रहित नहीं रहा है — अब तक 180 से अधिक भारतीय शांति सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले अपने प्राणों की आहुति दी है। उनका साहस और समर्पण मानवता की सामूहिक चेतना में सदा अंकित रहेगा।
यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 14 से 16 अक्तूबर तक नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें 32 देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भाग ले रहे हैं। इससे पहले भारतीय थल सेना प्रमुख ने भी सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत विश्व के सबसे बड़े और भरोसेमंद शांति योगदानकर्ताओं में से एक है।





