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Thursday, October 9, 2025

तीन दशक पुराना कर्ज़ और मौलाना तौकीर रजा की जवाबदेही

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बरेली। हाल ही में बरेली में हुए बवाल के बाद जेल भेजे गए मौलाना तौकीर रजा के सामने अब एक और चुनौती खड़ी हो गई है। यह मामला किसी राजनीतिक बयानबाज़ी या धार्मिक आंदोलन से जुड़ा नहीं है, बल्कि तीन दशक पुराना सहकारी बैंक कर्ज़ है, जो आज उनकी मुश्किलें बढ़ा रहा है।

सूत्रों के अनुसार, मौलाना तौकीर रजा, जो बदायूं के करतौली गांव के निवासी हैं, ने वर्ष 1990 में साधन सहकारी समिति करतौली से 5,560 रुपये का कृषि कर्ज़ लिया था। यह कर्ज़ उन्होंने खाद और बीज खरीदने के लिए लिया था। बैंक रिकॉर्ड के मुताबिक, इस कर्ज़ का मूलधन और ब्याज आज तक नहीं चुकाया गया। वर्तमान में ब्याज सहित कुल बकाया राशि 28,386 रुपये तक पहुंच चुकी है।

जिला सहकारी बैंक ने अब वसूली की कार्रवाई शुरू की है। गुरुवार को बैंक की टीम मौलाना के बरेली स्थित घर पर नोटिस चस्पा करने के लिए पहुंची। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यदि निर्धारित समयावधि में भुगतान नहीं किया गया, तो बैंक संपत्तियों को कुर्क करने की कार्रवाई करेगा। बैंक के मुख्य कार्यपालक अधिकारी हरि बाबू भारती ने कहा कि सभी बकायेदारों के खिलाफ सख्त नीति अपनाई जा रही है, ताकि वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित हो सके।

सूत्रों के मुताबिक, मौलाना ने पहले ही बदायूं में अपनी अधिकांश संपत्तियां बेच दी हैं, इसलिए अब बैंक की नजर बरेली और आसपास के जिलों में स्थित संपत्तियों पर है। यह मामला शासन स्तर तक पहुंच चुका है और प्रशासन को वसूली अभियान में सहयोग करने के निर्देश दिए गए हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सिर्फ़ कर्ज़ वसूली का नहीं है, बल्कि एक संदेश भी है कि चाहे व्यक्ति कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, कानून और वित्तीय जिम्मेदारी से कोई बच नहीं सकता। मौलाना तौकीर रजा के राजनीतिक और धार्मिक प्रभाव के बावजूद यह कार्रवाई यह दर्शाती है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं।

सहकारी बैंकों की स्थिति पहले से ही संवेदनशील है। अगर बड़े-बड़े प्रभावशाली लोग अपने पुराने कर्ज़ नहीं चुकाते, तो इसका सीधा असर उन किसानों पर पड़ता है, जो इन बैंकों पर निर्भर हैं। इसलिए बैंक प्रशासन की सख्ती स्वागत योग्य है और यह उम्मीद की जा रही है कि वसूली कार्रवाई सभी बकायेदारों के लिए एक सबक साबित होगी।

तीन दशक पुराने इस छोटे से ऋण की राशि शायद आज की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी न लगे, लेकिन यह वित्तीय अनुशासन, जवाबदेही और कानून की गरिमा की परीक्षा जरूर है। अगर प्रशासन इसे निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से अंजाम तक पहुँचाता है, तो यह संदेश देगा कि किसी के पद या प्रभाव से कानून कमजोर नहीं होता।

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