रिश्तों पर लगा कलंक: जब पिता ही बन गया बेटी का दुश्मन

0
11

गोरखपुर की दर्दनाक घटना ने फिर झकझोर दिया समाज को

गोरखपुर से आई यह खबर किसी को भी अंदर तक हिला देने वाली है। तिवारीपुर थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति ने अपनी नाबालिग सौतेली बेटी के साथ दुष्कर्म जैसा घिनौना अपराध किया — वह भी कई दिनों तक। यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि समाज की संवेदनाओं पर गहरी चोट है।
रिश्तों के सबसे पवित्र बंधन — पिता और बेटी — के बीच जब दरिंदगी घुसपैठ कर जाए, तो सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हम कहां जा रहे हैं? जिस पिता को बेटी की सुरक्षा का सबसे मजबूत कवच होना चाहिए, वही जब शिकारी बन जाए, तो समाज की नैतिकता का क्या मूल्य रह जाता है?
पीड़िता की मां की शिकायत पर पुलिस ने तत्परता से कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। बताया गया है कि आरोपी की तीन शादियां हो चुकी हैं। उसकी पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी है, दूसरी पत्नी के साथ वह रहता था, जबकि तीसरी पत्नी अपने मायके में थी। इसी दौरान, उसने सौतेली बेटी के साथ दुष्कर्म किया और विरोध करने पर जान से मारने की धमकी दी।
मां ने जब बेटी के चेहरे की उदासी और भय को महसूस किया, तब प्यार से पूछताछ में जो सच सामने आया, उसने उसे भीतर तक तोड़ दिया। उसके बाद जो हुआ, वह हर संवेदनशील व्यक्ति के लिए सोचने का विषय है — मां ने साहस दिखाया, पुलिस को सूचना दी, और न्याय की राह पर कदम बढ़ाया। यह कदम उस भयभीत समाज के लिए उदाहरण है जो अक्सर ऐसे मामलों में “अपनी इज्जत” के डर से चुप रह जाता है।

एसपी सिटी अभिनव त्यागी के अनुसार, पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर यह संदेश दिया है कि इस तरह के अपराधों में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी।

पर सवाल यह भी है — क्या सिर्फ गिरफ्तारी और सजा से यह समस्या खत्म हो जाएगी?
उत्तर है — नहीं।
क्योंकि यह मामला केवल कानून का नहीं, बल्कि संवेदनाओं और संस्कारों की टूटन का है।
आज जरूरत है कि हम अपने बच्चों — खासकर बेटियों — को न सिर्फ “डर से बचना” सिखाएं, बल्कि “बोलने का साहस” भी दें। उन्हें यह भरोसा दिलाएं कि गलत के खिलाफ आवाज उठाना ही सच्चा धर्म है, भले ही अपराधी अपने ही घर के भीतर क्यों न हो।
समाज को भी यह समझना होगा कि चुप्पी अपराध को बढ़ावा देती है। पड़ोस, रिश्तेदार, स्कूल — हर स्तर पर ऐसी स्थितियों में संवेदनशीलता और तत्परता आवश्यक है। सरकार और पुलिस की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, परंतु पीड़िता के मानसिक पुनर्वास और मनोवैज्ञानिक सहायता के बिना न्याय अधूरा रहेगा।
यह घटना एक चेतावनी है — उस समाज के लिए जो रिश्तों की पवित्रता को स्वतः सुरक्षित मान बैठा है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि सुरक्षा दीवारों से नहीं, बल्कि संस्कारों और सजगता से आती है।
यह समय है — अपनी बेटियों को डर से नहीं, विश्वास से जीना सिखाने का।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here