झूठ पर सख्ती ही सच्चाई की रक्षा का एकमात्र रास्ता

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प्रशांत कटियार

भारत में आज झूठ बोलना, झूठी शिकायत करना या फर्जी मुकदमा लिखवाना किसी कला से कम नहीं रह गया है। जिसने सच्चाई को कुचलना सीख लिया, वही व्यवस्था में बच निकलता है और जो ईमानदार है, वह कानून की जाल में फंस कर अपना जीवन बरबाद कर बैठता है। यह विडंबना है कि जिस देश में सत्य ही शिव है कहा जाता है, वहीं झूठ बोलने वाला व्यक्ति आराम से घूमता है और सच कहने वाला अदालतों के चक्कर काटता रहता है।भारत में झूठ बोलना अब एक आदत नहीं बल्कि एक हथियार बन चुका है। कोई झूठी शिकायत करता है, कोई फर्जी मुकदमा दर्ज कराता है, कोई मीडिया में शिकायत पत्र के आरोप पर किसी की छवि बिगाड़ देता है। दुख की बात यह है कि इन सबके बावजूद झूठे लोगों पर कार्रवाई के नाम पर सन्नाटा पसरा रहता है। वहीं सच्चे लोग अपनी ईमानदारी का सबूत देने में ज़िंदगी बिता देते हैं। यह देश के कानून और व्यवस्था पर एक गहरा प्रश्नचिह्न है।अगर भारत में झूठ को गंभीर अपराध घोषित कर दिया जाए, तो समाज में एक बड़ा सुधार देखने को मिलेगा। क्योंकि हर समस्या की जड़ झूठ है राजनीति में, पुलिस जांच में, मीडिया रिपोर्टिंग में और यहां तक कि न्यायालयों में दिए गए बयानों में भी। जब तक झूठ बोलने वाला सुरक्षित रहेगा, तब तक कोई व्यवस्था ईमानदार नहीं हो सकती।वर्तमान कानूनों में झूठी शिकायत, झूठी गवाही और मानहानि के प्रावधान तो हैं, पर उनका पालन ना के बराबर होता है। कोई व्यक्ति झूठा मुकदमा दर्ज कराए, जांच के दौरान सच्चाई सामने आ जाए, तब भी उस व्यक्ति पर शायद ही कोई सजा होती हो। परिणाम यह होता है कि लोग निर्भीक होकर फर्जी मुकदमे लिखवाते हैं, बेगुनाहों की इज्जत सरेआम नीलाम होती है और बाद में जब झूठ साबित हो जाता है, तब तक सब कुछ खत्म हो चुका होता है।मीडिया की भूमिका भी अब सवालों के घेरे में है। जैसे ही कोई एफआईआर दर्ज होती है, वैसे ही चैनलों पर हेडलाइन बनती है, बड़ा खुलासा, सनसनीखेज मामला। बिना जांच के नाम, फोटो और पूरा ब्योरा दिखा दिया जाता है। कोई यह नहीं सोचता कि अगर आरोप झूठे निकले तो उस व्यक्ति का क्या होगा जिसकी सामाजिक छवि मिट्टी में मिल गई।जरूरत है कि देश में झूठ बोलने और फैलाने वालों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई हो। अगर कोई व्यक्ति झूठी शिकायत करता है तो उसके खिलाफ उसी तरह मुकदमा दर्ज हो जैसे उसने दूसरों के खिलाफ कराया था। अगर कोई जांच अधिकारी जानबूझकर गलत रिपोर्ट तैयार करता है या सच्चाई दबाता है, तो उसे भी जेल भेजा जाए। मीडिया संस्थानों को भी जवाबदेह बनाना होगा ताकि बिना जांच के खबर चलाने वालों को भारी जुर्माने और लाइसेंस निलंबन जैसी सजा मिले।साथ ही न्याय व्यवस्था में ऐसे विशेष प्रावधान किए जाएं कि झूठे मुकदमों के मामलों का निपटारा तीन महीने के भीतर हो सके। इससे सच्चे व्यक्ति को राहत मिलेगी और झूठ फैलाने वालों को डर। साथ ही सरकार को चाहिए कि झूठे आरोपों से बदनाम हुए लोगों के लिए सार्वजनिक माफी और मुआवजे की व्यवस्था करे, ताकि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा वापस बहाल हो सके।मेरे साथ भी हाल ही में ऐसा ही हुआ। कुछ दिन पहले एक सरकारी कर्मचारी ने मेरे खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया। पुलिस ने बिना जांच किए, बिना मुझसे संपर्क किए, सीधे मुकदमा दर्ज कर लिया। यह वही लचर व्यवस्था है, जो सच्चे नागरिक को पहले अपराधी घोषित कर देती है और बाद में सच्चाई ढूंढने निकलती है। हालांकि इस मामले में जांच अधिकारी ने निष्पक्षता दिखाई, तथ्यों की पड़ताल की और अंततः मुकदमा झूठा पाया गया। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अगर जांच अधिकारी भी ईमानदार न होता, तो एक झूठ मेरे जीवन और प्रतिष्ठा दोनों को निगल जाता।भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सच्चाई की रक्षा कानून का पहला कर्तव्य होना चाहिए। क्योंकि जब झूठ ताकत बन जाता है, तो न्याय मजाक बन जाता है। अब वक्त है कि कानून झूठ को केवल अनैतिक नहीं, बल्कि आपराधिक घोषित करे। सच्चाई की रक्षा तभी संभव है जब झूठ को सजा का भय हो। देश को अब यह तय करना होगा कि वह झूठ के साथ खड़ा रहेगा या सच्चाई के पक्ष में।

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