कायमगंज: राष्ट्रीय प्रगतिशील फोरम द्वारा विश्व कवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि की रामायण (Valmiki Ramayana) विश्व साहित्य के इतिहास में प्रथम महाकाव्य है। उनके श्री राम शाश्वत लोकनायक हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। विग्रह वान धर्म हैं उनका जीवन धर्म और अध्यात्म के सिद्धांतों का व्यवहारिक उदाहरण है। आज के दौर में श्री राम के शौर्य एवं लौह संकल्प की जरूरत है।
गीतकार पवन बाथम ने कहा कि आज सारी धरती पर आसुरी शक्तियां, अराजकता, हिंसा और उन्माद का वातावरण बनाए हुए हैं और जिम्मेदार विश्व शक्तियां असहाय होकर इसे देख रही हैं। ऐसे में मानवता को निशिचर हीन धरती करने का संकल्प लेने वाले वाल्मीकि के राम की जरूरत है। प्रोफेसर कुलदीप आर्य ने कहा कि बाल्मीकि की रामायण मिथक नहीं है बल्कि पूरे त्रेता युग का सच्चा इतिहास है।
पूर्व प्रधानाचार्य अहिवरन सिंह गौर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने जिस राम कथा का शुभारंभ करके धर्म और संस्कृति का गौरव गान किया उस कथा को गोस्वामी तुलसीदास ने घर-घर में पहुंचा दिया और आज रामायण सारे विश्व में पूजी जाती है। प्रधानाचार्य शिवकांत शुक्ला ने कहा कि गुरु वशिष्ठ ने श्री राम को आदर्श राजा बनने की शिक्षा दी तो क्रांतिकारी महर्षि विश्वामित्र ने उन्हें लोकनायक बना दिया और वे भगवान की तरह पूज्य हुए। युवा कवि अनुपम मिश्रा ने कहा कि
असुर मचाते फिर रहे धरती पर कोहराम।
आज चाहिए हमें फिर वाल्मीकि के राम।।
छात्र यशवर्धन ने कहा कि नहीं स्वर्ग से लाए थे वे कोई पैगाम।
स्वर्ग बनाने धरा को आए थे श्रीराम।।
डॉ सुनीत सिद्धार्थ ने कहा कि बाल्मीकि के श्री राम अयोध्या का वैभव छोड़कर वनवासियों, दलितों और उपेक्षित लोगों के बीच में रहकर और उनका मनोबल बढ़ाकर सामाजिक समरसता का संदेश देते हैं। मनीष गौड़ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री राम जैसे महापुरुष भारत की पवित्र भूमि पर ही होते हैं । दुनिया में कहीं भी राम ,कृष्ण,विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, गुरु गोविंद सिंह जी जैसे महापुरुष न हुए न होंगे।