आउटसोर्सिंग प्रणाली पर पूर्णविराम — अब सीधे नगर निगम देगा वेतन, बदलेगी सफाई व्यवस्था की सूरत
शरद कटियार
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ऐसा निर्णय लिया है जो केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक सम्मान और पारदर्शिता का नया अध्याय लिखने जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi government) द्वारा यह घोषणा कि अब सफाई कर्मियों को वेतन आउटसोर्सिंग कंपनियों के माध्यम से नहीं, बल्कि सीधे नगर निगम और नगर पालिका के द्वारा दिया जाएगा, लंबे समय से उठ रही एक बड़ी मांग को पूरा करती है।
यह निर्णय उस जमीनी हकीकत से उपजा है, जहाँ सफाई कर्मियों को वर्षों से आउटसोर्सिंग कंपनियों की मनमानी, वेतन कटौती और देरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। कई बार यह भी देखा गया कि जिन कर्मियों ने पूरे मनोयोग से काम किया, उन्हें महीनों तक मेहनताना नहीं मिला। ऐसे में सरकार का यह कदम श्रम के सम्मान और प्रणाली की पारदर्शिता दोनों को एक साथ मजबूत करता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन में स्पष्ट कहा कि “सफाई कर्मी शहर की स्वच्छता व्यवस्था के वास्तविक नायक हैं। उनके परिश्रम के बिना स्वच्छ भारत की परिकल्पना अधूरी है।” यह वक्तव्य केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि एक नीतिगत सोच का परिचायक है। सरकार ने अब यह सुनिश्चित किया है कि इन कर्मियों को न तो किसी निजी एजेंसी के चक्कर लगाने होंगे, न ही किसी बिचौलिये के माध्यम से उनका हक रोका जा सकेगा।
दरअसल, आउटसोर्सिंग व्यवस्था का उद्देश्य कभी दक्षता बढ़ाना था, लेकिन समय के साथ यह शोषण और अनियमितता का माध्यम बन गई। कंपनियां ठेके के नाम पर कम भुगतान करतीं, कर्मियों से अधिक काम लेतीं और कई बार वेतन वितरण में भ्रष्टाचार के आरोप भी सामने आते रहे। यह सब कुछ प्रशासनिक नियंत्रण के दायरे से बाहर था। अब जब वेतन सीधे नगर निगम द्वारा दिया जाएगा, तो जवाबदेही की सीधी रेखा खिंच जाएगी — न कोई बिचौलिया, न कोई ठेकेदार, सिर्फ कर्मी और उसका विभाग।
सफाई कर्मियों का जीवन स्तर सुधरेगा — उन्हें समय से पूरा वेतन मिलेगा।
दूसरा, नगर निगमों की प्रभावशीलता और पारदर्शिता बढ़ेगी।
तीसरा, जनता के बीच सफाई व्यवस्था के प्रति विश्वास और संतोष का वातावरण बनेगा।
और सबसे महत्वपूर्ण — यह निर्णय उस वर्ग के आत्मसम्मान को पुनर्स्थापित करेगा, जो प्रतिदिन शहरों को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखने के लिए मेहनत करता है।
योगी सरकार ने इससे पहले भी सफाई कर्मियों के कल्याण के लिए अनेक कदम उठाए हैं — सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति, स्थायी नियुक्तियों की प्रक्रिया, और डिजिटल पेमेंट व्यवस्था जैसी पहलों ने सुधार की दिशा में गति दी। मगर यह नवीनतम निर्णय उस प्रक्रिया की पराकाष्ठा है, जहाँ सरकार अपने कर्मियों के प्रति नीतिगत ईमानदारी दिखा रही है।
यह कहा जा सकता है कि यह निर्णय केवल वेतन भुगतान की तकनीकी सुधार भर नहीं, बल्कि शासन की संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व का प्रतीक है।
अगर नगर निकाय इसे ईमानदारी से लागू करते हैं, तो यह मॉडल पूरे देश के लिए मिसाल बन सकता है — जहाँ श्रमिकों को न केवल उनका हक समय पर मिले, बल्कि उनका सम्मान और अधिकार दोनों सुरक्षित रहें। इस फैसले ने यह साबित किया है कि “स्वच्छ भारत” का सपना सिर्फ नारों से नहीं, बल्कि नीतिगत संवेदनाओं से साकार होगा।