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Tuesday, October 7, 2025

अधिवक्ता राकेश किशोर के प्रेक्टिस सस्पेंड पर विवाद, आस्था और न्यायिक संवेदनाओं को लेकर उठी आवाज़

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक गंभीर और संवेदनशील मामला सामने आया है, जिसने न्यायिक व्यवस्था और हिंदू समुदाय की आस्था दोनों को चुनौती दी है। शिशिर चतुर्वेदी, राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिल भारत हिन्दू महासभा और बार काउंसिल उत्तर प्रदेश के प्रत्याशी, ने स्पष्ट किया है कि उनके अधिवक्ता साथी राकेश किशोर (Advocate Rakesh Kishore) को प्रेक्टिस से सस्पेंड (suspension) करना न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने इस मामले को हिन्दू समुदाय की आस्था से सीधे जुड़े अत्यंत गंभीर मुद्दे के रूप में वर्णित किया।

शिशिर चतुर्वेदी ने कहा कि एक जज की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति द्वारा सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था पर चोट पहुँचाना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। उनका यह भी कहना है कि पूरे मामले पर कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए था, जिससे अधिवक्ता अपना पक्ष खुलकर रख सकें। उन्होंने उल्लेख किया कि नाथुराम गोडसे के मामले में भी अदालत ने इसी तरह संज्ञान लिया था, जिससे समाज को पूरी जानकारी मिल सकी थी कि किस परिस्थिति में इतना बड़ा दुस्साहस किया गया।

चतुर्वेदी ने बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया की कार्रवाई पर भी सवाल उठाया। उनका कहना है कि बार काउंसिल को पहले राकेश किशोर का पक्ष सुनना चाहिए था, क्योंकि यह संस्था अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए स्थापित है। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से प्रेक्टिस से सस्पेंड करना न्यायसंगत नहीं है और यह कदम न केवल कानूनी दृष्टि से विवादास्पद है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संवेदनाओं को भी चोट पहुँचाता है।
शिशिर चतुर्वेदी ने आगे कहा कि यह मामला सिर्फ व्यक्तिगत अधिकारों का सवाल नहीं है, बल्कि पूरे समाज की आस्था से जुड़ा हुआ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जज की कुर्सी पर बैठकर इस तरह की कार्रवाई करना और न्यायिक पद का दुरुपयोग करना कतई सहनीय नहीं है। उनकी प्रतिक्रिया ने पूरे हिन्दू समुदाय और अधिवक्ता समाज में चर्चा का विषय बना दिया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली और धार्मिक संवेदनाओं के बीच संतुलन की चुनौती पेश करता है। अधिवक्ता समाज में भी यह व्यापक चर्चा का विषय बना है, क्योंकि इससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और संवेदनशीलता दोनों पर सवाल उठते हैं। इस मामले ने बार काउंसिल और न्यायिक प्रणाली के निर्णयों पर भी नई बहस शुरू कर दी है। समाज की व्यापक प्रतिक्रिया को देखते हुए अब यह देखना होगा कि कोर्ट और संबंधित संस्थाएं किस दिशा में कदम उठाती हैं।

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