नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च न्यायपालिका में आज एक अत्यंत गंभीर और शर्मनाक घटना देखने को मिली, जब मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई पर सुनवाई के दौरान किसी व्यक्ति ने जूता फेंकने का प्रयास किया। यह घटना न केवल प्रधान न्यायाधीश के सम्मान और सुरक्षा पर हमला है, बल्कि इसके माध्यम से पूरी न्याय व्यवस्था की गरिमा को चुनौती देने का प्रयास किया गया। सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर यह हमला देश की संवैधानिक संस्थाओं और लोकतंत्र की आत्मा के लिए भी चिंता का विषय है।
घटना के तुरंत बाद कोर्ट परिसर में सुरक्षा कर्मियों ने हस्तक्षेप किया और आरोपी को नियंत्रित करने की कोशिश की। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, यह प्रयास सामाजिक असहमति और हिंसा की प्रवृत्ति का प्रतीक था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि आज समाज में असहमति को अभद्रता और हिंसा के माध्यम से व्यक्त करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। न्यायविदों का मानना है कि जब न्याय के सर्वोच्च मंच पर बैठे व्यक्ति की सुरक्षा और सम्मान को खतरा होता है, तो यह सीधे तौर पर पूरी न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान की सुरक्षा पर सवाल उठाता है।
इस मामले पर राजनीतिक और सामाजिक नेताओं ने भी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली नेता चंद्रशेखर आजाद ने इस घटना की कट्टर निंदा करते हुए कहा कि यह केवल प्रधान न्यायाधीश पर हमला नहीं है, बल्कि यह जातिवाद, असहिष्णुता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अवमानना का भी प्रतीक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी घटनाओं से यह संकेत मिलता है कि समाज में असहमति को हिंसा और अभद्रता के माध्यम से व्यक्त करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो किसी भी लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है।
चंद्रशेखर आजाद ने प्रधानमंत्री कार्यालय से मांग की कि आरोपी पर देशद्रोह और न्यायिक गरिमा भंग करने की सबसे सख्त धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार का हमला सीधे तौर पर देश की आत्मा पर हमला है और इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश पर हमला केवल व्यक्तिगत हमला नहीं है, बल्कि यह पूरे न्यायिक तंत्र की प्रतिष्ठा और विश्वास पर गंभीर चोट है। यह घटना न केवल न्यायपालिका के लिए चुनौती है, बल्कि पूरे समाज और लोकतंत्र के लिए चेतावनी भी है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि संवैधानिक संस्थाओं की सुरक्षा, उनके सम्मान की रक्षा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना हर नागरिक और सरकार की जिम्मेदारी है।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई ने हाल ही में अपने पदभार की शपथ ली है और न्यायपालिका में उनकी प्रतिष्ठा और निष्पक्ष दृष्टिकोण के लिए उन्हें व्यापक सम्मान प्राप्त है। उनके साथ हुई इस घटना ने पूरे न्यायिक समुदाय में गहरी नाराजगी और चिंता पैदा कर दी है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने मामले की गहन जांच शुरू कर दी है और सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त करने के संकेत दिए हैं।
चंद्रशेखर आजाद ने अंत में कहा कि यह घटना केवल एक व्यक्ति या घटना तक सीमित नहीं है। यह पूरे लोकतंत्र की सुरक्षा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान के प्रति समाज के सम्मान के लिए चेतावनी है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि न्यायपालिका पर किसी भी प्रकार का हमला देश की आत्मा पर हमला है और इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में इस शर्मनाक घटना के बाद पूरे देश में न्याय और कानून के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता की आवश्यकता फिर से महसूस की जा रही है। यह घटना देशवासियों के लिए एक गंभीर संदेश है कि संवैधानिक संस्थाओं और न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना हर नागरिक का कर्तव्य है और इसे कमजोर करने वाले किसी भी प्रयास को सख्ती से रोका जाना चाहिए।