अब पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज करना आसान नहीं — सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा आदेश

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– सरकार की आलोचना के लिए किसी पत्रकार पर आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी पर लगाई रोक

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिर्फ सरकार या मुख्यमंत्री की आलोचना करने पर किसी पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए। यह टिप्पणी अदालत ने उत्तर प्रदेश के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए दी।
अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कहा गया है कि इस दौरान पत्रकार के खिलाफ कोई दमनात्मक कार्रवाई (coercive action) नहीं की जाएगी।
लखनऊ निवासी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के खिलाफ एक ऑनलाइन लेख को लेकर FIR दर्ज की गई थी। लेख में उन्होंने प्रदेश में प्रशासनिक पदों पर जाति आधारित तैनातियों को लेकर सवाल उठाए थे। शिकायतकर्ता ने इसे “भ्रामक” और “सरकार विरोधी” बताते हुए मुकदमा दर्ज कराया था।
इस FIR में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई धाराएँ और आईटी एक्ट की धारा 66 लगाई गई थीं। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि यह मुकदमा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) का दमन है।
दो जजों की पीठ — न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी — ने कहा,
> “लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया नहीं जा सकता। किसी पत्रकार द्वारा सरकार की आलोचना को अपराध नहीं कहा जा सकता। संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) हर नागरिक को बोलने और लिखने की स्वतंत्रता देता है।”
कोर्ट ने कहा कि राज्य और पुलिस को FIR दर्ज करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपों का कानूनी आधार हो, अन्यथा यह संविधान के खिलाफ होगा।
यह आदेश देशभर के पत्रकारों के लिए राहत लेकर आया है। पिछले कुछ वर्षों में कई रिपोर्ट्स सामने आईं, जिनमें सरकार या प्रशासन की आलोचना करने वाले पत्रकारों पर FIR या गिरफ्तारी की कार्रवाई हुई।
न्यूज़लॉन्ड्री के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2012 से 2022 के बीच देश में करीब 423 पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें से अधिकांश छोटे शहरों के पत्रकार थे। वहीं कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में दर्जनों पत्रकारों पर अभी भी विभिन्न मुकदमे लंबित हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस ताज़ा आदेश से ऐसे पत्रकारों को राहत और हौसला दोनों मिला है, जो सत्ताधारी तंत्र की नीतियों या कार्यप्रणाली की आलोचना करते हैं।
कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई नवंबर 2024 में निर्धारित की गई है।
अंतिम फैसला आने तक अभिषेक उपाध्याय को गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश प्रेस की आज़ादी की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। अदालत ने साफ कहा है —
> “सरकार की आलोचना अपराध नहीं, लोकतंत्र का हिस्सा है।”
अब यह फैसला उन तमाम पत्रकारों के लिए ढाल बनेगा, जो सत्ताधारियों से सवाल पूछने की हिम्मत रखते हैं।

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