आत्मा का अनुभव: जब भीतर की शांति बाहर का संसार बदल देती है

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शरद कटियार
हवा हर जगह है, लेकिन पंखे के पास बैठकर हम उसे और अधिक महसूस करते हैं।
उसी तरह आत्मा भी सर्वव्यापी है, लेकिन उसे अनुभव करने के लिए हमें अपनी ऊर्जा का स्तर बढ़ाना होता है। यह अनुभव तब संभव होता है, जब हमारी सोच और भावनाएं शुद्ध हों, और मन शांत हो।
आत्मा किसी एक शरीर या स्थान में सीमित नहीं, बल्कि हर जीवन में प्रवाहित एक दिव्य ऊर्जा है। यह वही शक्ति है जो हमें जीवन देती है, परंतु उसकी उपस्थिति का एहसास तभी होता है जब हमारे भीतर की अशांति समाप्त होती है।
हमारी सोच ही वह माध्यम है जो हमें आत्मा के निकट या दूर ले जाती है।
जब विचार प्रेम, दया, करुणा और सत्य से जुड़े होते हैं, तो आत्मा की अनुभूति स्पष्ट होती है। वहीं जब मन ईर्ष्या, भय या क्रोध से भर जाता है, तो आत्मा की आवाज़ सुनाई नहीं देती।
जैसे गंदे जल में चंद्रमा का प्रतिबिंब धुंधला दिखाई देता है, वैसे ही विकारों से भरे मन में आत्मा की झलक नहीं मिलती। इसलिए मन की सफाई आत्मिक अनुभव की पहली शर्त है।
जब मन शांत होता है, तब बाहरी संसार भी सुंदर दिखने लगता है।
ध्यान, साधना, प्रार्थना या कुछ क्षणों की मौन स्थिरता — ये सब आत्मा की अनुभूति के मार्ग हैं।
जो व्यक्ति भीतर शांति का दीपक जला लेता है, वह किसी भी परिस्थिति में संतुलित रहता है। उसके लिए बाहरी हलचल भी ईश्वर की योजना का हिस्सा लगती है।
> “जिसने स्वयं को जीत लिया, उसने संसार जीत लिया।”
आत्मा को अनुभव करने के लिए किसी चमत्कार की नहीं, बल्कि जागरूकता और सादगी की जरूरत है। जब भीतर का दीपक जलता है, तो बाहरी अंधकार स्वतः मिट जाता है।
यह अनुभव हर किसी के भीतर संभव है — बस मन को शांत कर, विचारों को सकारात्मक दिशा देनी होती है।
> “बाहर का संसार तभी बदलता है, जब भीतर की चेतना जगती है।
आत्मा सर्वत्र है — हवा की तरह, प्रकाश की तरह।
पर उसे महसूस करने के लिए मन को स्थिर, विचारों को पवित्र और जीवन को सरल बनाना आवश्यक है।
जब भीतर की शांति जागेगी, तब हर हवा में, हर मुस्कान में, हर क्षण में ईश्वर का अनुभव होगा।

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