शरद कटियार
डाक विभाग ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए रजिस्टर्ड डाक सेवा (Registered Postal Service) को समाप्त करने और उसकी जगह केवल स्पीड पोस्ट )speed post) के विकल्प को रखने की घोषणा की है। यह प्रावधान एक अक्टूबर से लागू हो चुका है। पहले इसे सितंबर से लागू करना था, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे टाल दिया गया था। अब जबकि यह सेवा स्थायी रूप से बंद हो चुकी है, सवाल उठता है कि क्या यह निर्णय समय की मांग है या एक ऐतिहासिक परंपरा को समाप्त करने की जल्दबाज़ी?
भारतीय डाक सेवा दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे पुराने संचार नेटवर्कों में से एक रही है। ग्रामीण भारत से लेकर शहरी महानगरों तक, चिट्ठियां, दस्तावेज़ और सरकारी पत्र रजिस्टर्ड डाक के ज़रिए सुरक्षित और कानूनी मान्यता प्राप्त तरीके से भेजे जाते थे। न्यायालयी समन, नौकरी की नियुक्ति पत्र, बैंकिंग नोटिस, बीमा संबंधी दस्तावेज़ – इन सबकी डिलीवरी के लिए रजिस्टर्ड डाक ही एकमात्र भरोसेमंद साधन माना जाता था।
रजिस्टर्ड डाक की खासियत यह थी कि इसमें भेजने वाले और पाने वाले दोनों को एक तरह की कानूनी सुरक्षा और प्रमाणिकता मिलती थी। अदालत में भी यह एक साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होता था। यही कारण था कि दशकों तक सरकारी विभागों, वकीलों, शिक्षण संस्थानों और आम नागरिकों के लिए यह पहली पसंद बनी रही। लेकिन तकनीकी युग में हालात तेजी से बदले हैं। इंटरनेट, ईमेल, ई-कॉमर्स और मोबाइल सेवाओं ने डाक व्यवस्था को चुनौती दी। लोगों के निजी पत्र लगभग खत्म हो चुके हैं। अब डाक विभाग का सबसे बड़ा काम ऑनलाइन शॉपिंग पार्सल, स्पीड पोस्ट, और सरकारी योजनाओं के लेन-देन तक सिमट गया है।
अधिकारियों का कहना है कि स्पीड पोस्ट, रजिस्टर्ड डाक की तुलना में ज्यादा तेज़, सुरक्षित और डिजिटल ट्रैकिंग की सुविधा वाली सेवा है। ग्राहक मोबाइल या वेबसाइट के जरिए तुरंत जान सकता है कि उसका पत्र कहां पहुंचा है। वहीं, रजिस्टर्ड डाक में यह सुविधा उतनी पारदर्शी और आधुनिक नहीं थी।
साथ ही, रजिस्टर्ड डाक की लागत और रखरखाव भी डाक विभाग के लिए चुनौती बन चुकी थी। लाखों पत्रों को मैन्युअली एंट्री करना, उनकी निगरानी करना और फिर प्रमाणित रसीद भेजना – यह प्रक्रिया समय और संसाधन दोनों खाती थी।
स्पीड पोस्ट भारत में 1986 से शुरू हुई थी और धीरे-धीरे यह डाक विभाग की सबसे विश्वसनीय और लोकप्रिय सेवा बन गई। इसकी सबसे बड़ी ताकत है – समयबद्ध डिलीवरी। बड़े शहरों के बीच यह 24 से 48 घंटे में पत्र पहुंचा देती है। छोटे कस्बों और गांवों तक भी यह 4-5 दिन में पहुंच जाती है, जो पहले के मानकों से कहीं बेहतर है।
स्पीड पोस्ट की दूसरी बड़ी खूबी है – डिजिटल ट्रैकिंग। हर उपभोक्ता अपने पत्र या पार्सल का पूरा सफर ऑनलाइन देख सकता है। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और उपभोक्ता का भरोसा मजबूत होता है। तीसरी बात – स्पीड पोस्ट की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता भी है। जहां रजिस्टर्ड डाक सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर कारगर थी, वहीं स्पीड पोस्ट को विश्व डाक संघ (UPU) की सदस्यता के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह बदलाव सबके लिए समान रूप से लाभकारी है? ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोग, जिन्हें डिजिटल ट्रैकिंग की उतनी जानकारी नहीं है, वे अभी भी पारंपरिक रसीद और हस्ताक्षर आधारित सुरक्षा पर भरोसा करते हैं। कानूनी और प्रशासनिक दृष्टि से भी एक शंका उठती है – अदालतें और सरकारी विभाग वर्षों से रजिस्टर्ड डाक को मानक मानते आए हैं। अब अगर कोई केवल स्पीड पोस्ट से पत्र भेजेगा, तो क्या उसकी वैधता उतनी ही मानी जाएगी? इस पर अभी स्पष्ट दिशा-निर्देश की ज़रूरत है।
इसके अलावा, रजिस्टर्ड डाक अपेक्षाकृत सस्ती सेवा थी। जबकि स्पीड पोस्ट की दरें अधिक हैं। ग्रामीण और गरीब तबके के लिए यह एक अतिरिक्त बोझ साबित हो सकती है। डाक विभाग का दावा है कि इस बदलाव से जनता को बेहतर सेवा मिलेगी। सच है कि समय की बचत और सुरक्षा की दृष्टि से स्पीड पोस्ट अधिक आधुनिक है। लेकिन इस सुधार को पूरी तरह सफल बनाने के लिए कुछ ज़रूरी कदम उठाने होंगे जैसे सस्ती दरें तय करना – ताकि गरीब और ग्रामीण तबका भी बिना बोझ महसूस किए स्पीड पोस्ट का लाभ उठा सके।डिजिटल साक्षरता अभियान – लोगों को समझाया जाए कि स्पीड पोस्ट कैसे ट्रैक किया जाता है और इसमें उन्हें क्या फायदे मिलेंगे।
कानूनी मान्यता स्पष्ट करना – न्यायपालिका और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि स्पीड पोस्ट से भेजा गया पत्र भी रजिस्टर्ड डाक के बराबर कानूनी साक्ष्य माना जाए। ग्रामीण नेटवर्क को मजबूत करना – यह सुनिश्चित करना होगा कि गांवों तक स्पीड पोस्ट समय पर पहुंचे और उसकी गति व पारदर्शिता बनी रहे।
यह सच है कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन साधना कठिन होता है। रजिस्टर्ड डाक एक स्मृति और इतिहास का हिस्सा है, लेकिन समय की मांग यही है कि तकनीकी रूप से सक्षम और तेज़ साधनों को अपनाया जाए। यह कदम डाक विभाग के आधुनिकीकरण की दिशा में बड़ा परिवर्तन है।
हालांकि, इसका यह मतलब नहीं होना चाहिए कि गरीब और अनपढ़ तबके को पीछे छोड़ दिया जाए। बदलाव तभी सार्थक है, जब वह समावेशी (inclusive) हो।
डाक विभाग का यह निर्णय निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक मोड़ है। रजिस्टर्ड डाक सेवा, जो कभी भारतीय संचार व्यवस्था की रीढ़ थी, अब इतिहास का हिस्सा बन गई है। इसे भावनात्मक रूप से स्वीकार करना कठिन है, लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से यह समय की मांग है। फिर भी, सरकार और डाक विभाग को चाहिए कि इस बदलाव के साथ-साथ उन वर्गों का विशेष ध्यान रखे, जो अब भी परंपरागत तरीकों पर निर्भर हैं।
अगर दरें किफायती हों, ट्रैकिंग सरल हो और कानूनी मान्यता सुनिश्चित की जाए, तो निश्चित रूप से स्पीड पोस्ट आम जनता के लिए रजिस्टर्ड डाक से भी अधिक लाभकारी सिद्ध होगी। इस बदलाव को केवल एक सेवा का अंत न मानकर, नई शुरुआत की तरह देखा जाना चाहिए। परंपरा को याद रखते हुए, आधुनिकता की ओर बढ़ना ही भारत जैसे देश के लिए सही राह है।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप