32 C
Lucknow
Wednesday, September 24, 2025

आस्था पर कलंक, शिक्षा पर आघात – वसंतकुंज आश्रम प्रकरण से सबक

Must read

दिल्ली का वसंतकुंज आश्रम, जो शिक्षा और आध्यात्मिकता का केंद्र माना जाता था, अब गंभीर आरोपों और अविश्वास के घेरे में है। आश्रम के संचालक स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती पर 17 छात्राओं से छेड़छाड़ का आरोप लगा है। यह घटना न केवल भयावह है बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि आखिर हमारी सामाजिक और संस्थागत व्यवस्थाएँ किस हद तक लापरवाह और खोखली हो चुकी हैं।
छात्राओं ने साहस दिखाया और अदालत में अपने बयान दर्ज कराए। यह कदम उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अन्याय सहते हैं लेकिन आवाज उठाने से डरते हैं। परंतु, यहाँ बड़ा सवाल यह है कि आश्रम प्रशासन और वार्डन इतने लंबे समय तक चुप क्यों रहे? क्या उन्हें कुछ पता नहीं था, या फिर जानबूझकर आँखें मूँद ली गई थीं? अगर आश्रम की आंतरिक व्यवस्था ही छात्रों की रक्षा करने में विफल रही, तो यह सीधे-सीधे संस्थागत अपराध है।
आरोपी संचालक का अपनी महंगी वोल्वो कार पर झूठा संयुक्त राष्ट्र (UN) नंबर लगाकर घूमना उसकी मानसिकता को उजागर करता है। यह दिखाता है कि वह आडंबर और छल के सहारे समाज को गुमराह करने का आदी था। साधु-संन्यासी का चोला ओढ़कर इस तरह की करतूतें करना आस्था पर कलंक है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि एक व्यक्ति इतनी देर तक फरार कैसे रह गया? क्या कानून व्यवस्था इतनी कमजोर है या फिर उसके पीछे कोई अदृश्य संरक्षण था?
शृंगेरी शारदापीठ ने सार्वजनिक बयान जारी कर आरोपी से नाता तोड़ दिया। यह कदम आवश्यक और तात्कालिक था। लेकिन केवल यही पर्याप्त नहीं। आस्था से जुड़े संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे न केवल दोषी को अलग करें बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के लिए ठोस ढाँचा बने। सवाल यह भी उठता है कि पीठ की गवर्निंग काउंसिल, जो आश्रम की देखरेख करती है, अब तक इस स्थिति से बेखबर क्यों रही?
यह मामला केवल एक व्यक्ति का अपराध नहीं है। यह उस गहरे विश्वास को हिला देता है, जिसके सहारे माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे आश्रमों और संस्थानों में भेजते हैं। जब आस्था पर दाग लगता है, तो उसकी चोट समाज की आत्मा तक जाती है। और जब शिक्षा के केंद्र इस तरह के घोटालों में फँसते हैं, तो युवा पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
अब वक्त है कि ऐसे मामलों को सिर्फ पुलिस और अदालत तक सीमित न रखा जाए। संस्थागत जवाबदेही तय हो – किसी भी आश्रम या शैक्षणिक संस्था को छात्रों की सुरक्षा पर लापरवाही का अधिकार नहीं होना चाहिए।आंतरिक निगरानी व्यवस्था बने – वार्डन या प्रबंधन की भूमिका की जांच हो और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।आस्था के नाम पर चल रहे ढोंग का पर्दाफाश हो – संत का वेश धारण करने वाले अगर अपराध करते हैं तो उन्हें और कठोर दंड मिलना चाहिए, क्योंकि वे समाज का विश्वास तोड़ते हैं।छात्राओं का मनोवैज्ञानिक सहयोग हो – पीड़िताओं को केवल कानूनी नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक सहयोग की भी आवश्यकता है।
वसंतकुंज आश्रम प्रकरण एक चेतावनी है। यह घटना हमें बताती है कि चोले और पदवियों के पीछे छिपे अपराधियों को पहचानना और बेनकाब करना ही समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। अब समय है कि हम आस्था और शिक्षा के इस संगम को पवित्र और सुरक्षित बनाएँ, वरना आने वाली पीढ़ियाँ विश्वास और संस्कार दोनों से वंचित हो जाएँगी।

Must read

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article