हर सैनिक के हाथ में ‘बाज’ भारतीय सेना ड्रोन लैस्ड फोर्स बनाने की तैयारी में तेजी

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नई दिल्ली। रूस-युक्रेन, इजरायल-हमास संघर्ष और अन्य वैश्विक घटनाओं के साथ ऑपरेशन सिंदूर के अनुभव ने स्पष्ट कर दिया है कि आधुनिक युद्ध में टेक्नोलॉजी ही निर्णायक भूमिका निभाएगी। इस समझ के साथ भारतीय सेना अब प्रत्येक सैनिक को पारंपरिक हथियारों के साथ ड्रोन संचालित करने की क्षमता देने की दिशा में सक्रिय कदम उठा रही है।

सेना का मानना है कि आने वाले युद्धों में वह जीतेंगी जो तकनीक में आगे हों। इसी सोच के तहत ‘ईगल इन द आर्म’ की अवधारणा पर काम जारी है — यानी हर सैनिक के पास न सिर्फ़ राइफल, बल्कि एक छोटा निगरानी/हैवी-ड्यूटी ड्रोन भी होगा, जिसे वह जरूरत के मुताबिक उड़ाकर निगरानी, लक्ष्य निर्धारण और हमले के लिए इस्तेमाल कर सकेगा।

सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने हालिया वक्तव्यों में स्पष्ट किया है कि आने वाले दिनों में भारतीय सेना की मारक क्षमता कई गुना बढ़ेगी और इसे हासिल करने के लिए फोर्स में तेजी से अत्याधुनिक उपस्कर जोड़े जा रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर ने विशेषकर यह सिखाया कि अगर एंटी-एयर डिफेंस मजबूत न हो तो झुंड में उड़ने वाले सस्ते ड्रोन गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। इसलिए ड्रोन और काउंटर-ड्रोन दोनों पर समान रूप से जोर दिया जा रहा है।

तेज रफ्तार सुधार कार्यक्रम का हिस्सा बनकर हाल ही में कोलकाता में तीनों सेनाओं के कमांडरों की बैठक में ड्रोन-सक्षम फोर्स की रणनीति पर व्यापक चर्चा हुई। सेना ने अपनी 19 प्रमुख मिलिट्री अकादमियों में ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करने का निर्णय लिया है ताकि सैनिकों को ड्रोन संचालन, निगरानी, लक्ष्यान्वयन और काउंटर-ड्रोन तकनीक में पारंगत किया जा सके। सेना प्रमुख ने अरुणाचल प्रदेश की एक अकादमी का हाल ही में दौरा भी कर इस पहल का जायजा लिया।

रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट महेन्द्र रावत के अनुसार, ड्रोन को सैनिकों तक पहुँचाने से दो बड़े लाभ होंगे — एक तो काउंटर-ड्रोन डिफेंस को सुदृढ़ करना और दूसरा प्रत्येक सैनिक को दूरदर्शिता व वास्तविक-समय जानकारी देने योग्य बनाना, जिससे वे मैदान में अधिक प्रभावी और सक्षम रहेंगे। इसी तर्ज पर इंफैंट्री बटालियनों को ड्रोन प्लाटून दिए जा रहे हैं, जबकि आर्टिलरी रेजिमेंटों को काउंटर-ड्रोन सिस्टम और लोइटरिंग म्यूनिशन जैसी तकनीकें सौंपी जा रही हैं।

ड्रोन का उपयोग केवल लड़ाकू भूमिकाओं तक सीमित नहीं रहेगा — इन्हें लॉजिस्टिक सहायता, आपूर्ति तथा मेडिकल इमरजेंसी में भी तैनात करने की योजना है। साथ ही दीर्घकालिक परिचालन और बढ़ी मारक क्षमता के लिए कंपोजिट बैटरियों तथा संबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी तेजी से काम चल रहा है।

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