कुपोषण से जंग – सेवा भाव से मिली नई दिशा

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फर्रुखाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मोत्सव पर डॉ. राममनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में आयोजित स्वास्थ्य शिविर सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह समाज के उस वर्ग को संबल देने का प्रयास था, जो अक्सर उपेक्षा का शिकार रह जाता है – कुपोषित बच्चे और उनकी माताएँ।
प्रभारी मंत्री जयवीर सिंह ने जिस आत्मीयता के साथ कुपोषित बच्चों और उनकी माताओं को मंच पर बुलाकर उपहार सौंपे, वह सिर्फ एक सरकारी कार्यक्रम की औपचारिकता नहीं बल्कि संदेश था कि शासन-प्रशासन उनकी चिंता करता है। बच्चों का स्वास्थ्य सिर्फ परिवार का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र की धरोहर है।
शिविर में एक दर्जन कुपोषित बच्चों की जांच और पोषण किट के वितरण ने यह स्पष्ट किया कि ‘पोषण अभियान’ केवल कागज़ी योजना नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर भी सक्रिय है। चिकित्सकों द्वारा माताओं को पौष्टिक आहार, देखभाल और स्वच्छता संबंधी जानकारी देना इस बात का प्रमाण है कि सरकार समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए गंभीर है।
लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी हम कुपोषण जैसी बुनियादी समस्या से क्यों जूझ रहे हैं? कुपोषण के आंकड़े सरकार की योजनाओं और उनके वास्तविक असर के बीच की दूरी को उजागर करते हैं। इस दूरी को पाटने के लिए केवल शिविरों का आयोजन पर्याप्त नहीं होगा। आवश्यक है कि माताओं को निरंतर पोषण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की सुगमता और आर्थिक सुरक्षा दी जाए।
सांसद मुकेश राजपूत, विधायक सुशील शाक्य, पूर्व विधायक नागेंद्र सिंह, कुलदीप गंगवार और जिलाध्यक्ष फतेह चंद्र वर्मा की मौजूदगी ने यह संदेश अवश्य दिया कि समाज के प्रतिनिधि इस लड़ाई में साथ हैं। किंतु यह साथ केवल मंच तक सीमित न रहकर, धरातल पर ठोस बदलाव में परिवर्तित होना चाहिए।
प्रधानमंत्री का जन्मोत्सव यदि ‘सेवा दिवस’ के रूप में मनाया गया है, तो यह तभी सार्थक होगा जब हर वर्ष नहीं, बल्कि हर दिन कुपोषण जैसी समस्याओं से जूझ रहे परिवारों को राहत मिले। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की है।
कुपोषित बच्चों की माताओं के चेहरे पर उपहार और सहयोग से जो उम्मीद की झलक दिखी, उसे स्थायी मुस्कान में बदलना ही हमारे सामूहिक प्रयासों का लक्ष्य होना चाहिए।

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