ग्रीन एनर्जी: भारत का गर्व और भविष्य

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✍️ दिव्यांशु कटियार

ग्रीन एनर्जी यानी नवीकरणीय ऊर्जा आज पूरी दुनिया के लिए भविष्य की सबसे बड़ी जरूरत बन चुकी है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और घटते प्राकृतिक संसाधन इंसानियत को बड़ी चुनौती दे रहे हैं। ऐसे समय में स्वच्छ ऊर्जा ही हमें सुरक्षित और सतत विकास की राह पर ले जा सकती है। 2025 के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि भारत इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति कर चुका है।
भारत की कुल ऊर्जा क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों का हिस्सा अब लगभग 50 प्रतिशत हो गया है। यह उपलब्धि 2030 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन भारत ने यह मील का पत्थर पाँच साल पहले ही छू लिया। आज देश की कुल स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लगभग 2,42,600 मेगावाट है। इसमें सबसे बड़ा योगदान सौर ऊर्जा का है जिसकी क्षमता 1,23,000 मेगावाट से अधिक हो चुकी है। पवन ऊर्जा की क्षमता करीब 52,600 मेगावाट है, जबकि छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से 5,100 मेगावाट और बायोमास से लगभग 10,700 मेगावाट बिजली मिल रही है। वेस्ट-टू-एनर्जी प्रोजेक्ट्स से भी धीरे-धीरे उत्पादन बढ़ रहा है और यह अब 800 मेगावाट से अधिक तक पहुंच चुका है।
केवल स्थापित क्षमता ही नहीं बल्कि उत्पादन के स्तर पर भी अक्षय ऊर्जा तेजी से बढ़ रही है। 2025 की पहली तिमाही में नई स्थापित कुल ऊर्जा क्षमता में करीब 79 प्रतिशत योगदान नवीकरणीय ऊर्जा का रहा। इसी अवधि में सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन में 16.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यह साफ संकेत है कि आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा खपत में भी स्वच्छ स्रोतों का दबदबा बढ़ेगा।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से दुनिया को भी ग्रीन एनर्जी की राह दिखाई है। राजस्थान का भादला सौर पार्क दुनिया का सबसे बड़ा सौर प्रोजेक्ट है, जो इस क्षेत्र में भारत की क्षमता को दिखाता है। तमिलनाडु और गुजरात पवन ऊर्जा में अग्रणी राज्य हैं, जबकि उत्तर भारत के हिमालयी इलाकों में जलविद्युत परियोजनाएँ बड़ी संभावना लिए हुए हैं। सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है, और मौजूदा उपलब्धियों को देखकर यह लक्ष्य असंभव नहीं लगता।
फायदे साफ हैं। ग्रीन एनर्जी से कार्बन उत्सर्जन घटता है, पर्यावरण बचता है और साथ ही लाखों रोजगार भी पैदा होते हैं। इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में अकेले नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 10 लाख से ज्यादा लोग पहले ही रोजगार पा चुके हैं। इसके साथ ही तेल और गैस के आयात पर निर्भरता भी कम हो रही है, जिससे भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता मजबूत हो रही है।
फिर भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। ऊर्जा भंडारण यानी स्टोरेज तकनीक अभी महंगी है और ग्रिड कनेक्टिविटी में सुधार की जरूरत है। ग्रामीण इलाकों तक सस्ती और भरोसेमंद ग्रीन एनर्जी पहुंचाना अभी भी आसान नहीं है। इसके अलावा शुरुआती निवेश ज्यादा होने की वजह से छोटे निवेशक पीछे हट जाते हैं।
फिर भी तस्वीर उत्साहजनक है। भारत ने साबित कर दिया है कि इच्छाशक्ति और योजनाबद्ध नीति से ग्रीन एनर्जी सिर्फ सपना नहीं बल्कि हकीकत बन सकती है। यह केवल तकनीकी प्रगति नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम सभी स्तरों पर ग्रीन एनर्जी को अपनाएँ, चाहे छत पर सोलर पैनल लगाकर, बायोगैस का इस्तेमाल बढ़ाकर या ग्रीन प्रोजेक्ट्स में निवेश करके, तो यह अभियान पूरे देश का गर्व बन जाएगा। आने वाले समय में भारत न केवल अपनी ऊर्जा जरूरतें स्वच्छ तरीके से पूरी करेगा बल्कि दुनिया को भी सतत भविष्य की राह दिखाएगा।

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