फर्रुखाबाद/लखनऊ: समाजवादी पार्टी की सरकार के दौर में हिंदुत्व के मुद्दे पर खुलकर आवाज बुलंद करने वाले Farrukhabad निवासी राजेश मिश्रा (Rajesh Mishra) को रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत जेल (jail) भेज दिया गया था। राजेश मिश्रा ने पूरे 282 दिन जेल की सलाखों के पीछे रहते हुए भी अपने इरादों को कमजोर नहीं पड़ने दिया। उनके साथ अंकित तिवारी ने भी यह संघर्ष झेला। दोनों ने जेल में रहते हुए भी हिंदुत्व की लड़ाई जारी रखी और बाहर आते ही उसी जोश और जुनून को बनाए रखा।
हिंदुत्व की आवाज बने, तो हुई थी किरकिरी
उस समय सपा सरकार में कद्दावर नेता आजम खान के लिए राजेश मिश्रा का आंदोलन सिरदर्द बन गया था। हिंदुत्व के मुद्दे पर सड़कों पर उतरने और युवाओं को जोड़ने के कारण उन पर शिकंजा कसा गया। रासुका लगाकर जेल भेजना इसी सियासी दबाव का नतीजा माना गया था।
संघर्ष के बाद उपेक्षा का शिकार
सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि 282 दिन जेल की सजा काटकर भी जब वे बाहर आए तो समाज और राजनीति के कई लोग उन्हें दरकिनार कर गए। उनकी लड़ाई और बलिदान का राजनीतिक फायदा दूसरे संगठनों और नेताओं ने उठाया, लेकिन जब असल मेहनतकशों की बारी आई तो उन्हें पीछे छोड़ दिया गया। लंबे समय तक शांत रहने के बाद अब राजेश मिश्रा ने एक बार फिर हिंदुत्व की जंग में उतरने का ऐलान कर दिया है। फर्रुखाबाद यूथ इंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “हिंदुत्व के लिए लड़ाई ही मेरी पहचान है। आने वाले समय में फिर से हिंदू संगठनों को मजबूत करने के लिए सड़कों पर उतरेंगे।”
ब्रजेश पाठक से करीबी और नई जिम्मेदारी की अटकलें
राजेश मिश्रा की पहचान उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के करीबी नेताओं में होती है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि निकट भविष्य में उन्हें हिंदुत्व से जुड़े किसी बड़े अभियान या संगठन की जिम्मेदारी मिल सकती है। उनके जेल जाने के बाद जिस तरह से आंदोलनों ने गति पकड़ी थी, उसी से यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब दोबारा कोई बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है।
14 अगस्त को फर्रुखाबाद कोतवाली में हुए एक विवाद ने भी काफी तूल पकड़ा था। इस प्रकरण में कई लोगों पर मुकदमे दर्ज हुए और गिरफ्तारी भी हुई। उस समय भी राजेश मिश्रा और उनके साथियों के नाम और संगठन का इस्तेमाल कर कई राजनीतिक चेहरों ने अपनी रोटियां सेंकीं, लेकिन बाद में उन्हें दरकिनार कर दिया गया।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर राजेश मिश्रा फिर से सक्रिय हुए तो हिंदुत्व की राजनीति को नई धार मिल सकती है। वहीं, ब्रजेश पाठक से नजदीकियों के चलते उनके सामने संगठनात्मक स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी आने की भी प्रबल संभावना जताई जा रही है।