28 C
Lucknow
Sunday, September 14, 2025

हिंदी के लिए कब तक दो दबाना पड़ेगा?

Must read

(विजय कुमार शर्मा-विभूति फीचर्स)

भारत की पहचान उसकी भाषाओं से है। यहाँ सैकड़ों बोलियाँ और दर्जनों भाषाएँ (languages) हैं, परंतु सबसे व्यापक और जीवंत भाषा है हिंदी (Hindi)। आज हिंदी न केवल उत्तर भारत बल्कि देश के कोने–कोने में समझी और बोली जाती है। फिर भी आश्चर्य यह है कि जब हम किसी बैंक, बीमा, मोबाइल कंपनी या हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करते हैं तो सबसे पहले यह सुनाई देता है- फॉर इंग्लिश प्रैस 1… हिंदी के लिए 2 दबाएँ।”

यह सवाल केवल तकनीकी प्रक्रिया का नहीं, बल्कि मानसिकता का है। अंग्रेज़ी को डिफ़ॉल्ट मान लेने और हिंदी को विकल्प बना देने की परंपरा इस देश की बहुसंख्यक जनता की उपेक्षा है। भारत में अधिकांश उपभोक्ता हिंदी भाषी हैं, परंतु उन्हें अपनी ही मातृभाषा में सेवा प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है। यह व्यवस्था उस सोच को दर्शाती है जिसमें अंग्रेज़ी को आधुनिकता का प्रतीक और हिंदी को “गाँव-देहात” की भाषा मान लिया गया।

सरकार की ओर से इस स्थिति को बदलने की कोशिशें हो रही हैं। उमंग ऐप, डिजिलॉकर, रेलवे टिकटिंग ऐप और कई सरकारी पोर्टल अब हिंदी को डिफ़ॉल्ट या समानांतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने लगे हैं। परंतु निजी कंपनियाँ अब भी अंग्रेज़ी को सर्वोपरि रखती हैं। कारण स्पष्ट है – कॉर्पोरेट जगत की मानसिकता और अंग्रेज़ी को लेकर बनी झूठी श्रेष्ठता की धारणा।

हिंदी को सिर्फ “प्रैस 2” का विकल्प मानकर छोड़ देना हमारी सांस्कृतिक अस्मिता और उपभोक्ता अधिकारों दोनों के साथ अन्याय है। यदि कोई ग्राहक हिंदी में सहज है तो उसे हर बार यह याद क्यों दिलाया जाए कि उसकी भाषा “पहली” नहीं, “दूसरी” है? यह व्यवस्था बदलनी ही होगी।

आज आवश्यकता है कि हिंदी को केवल “विकल्प” नहीं, बल्कि “प्राथमिकता” बनाया जाए। कंपनियाँ उपभोक्ताओं को वही भाषा दें जो उनके दिल–दिमाग की भाषा है। जब देश की आत्मा हिंदी में धड़कती है, तो ग्राहक सेवा की धड़कन भी हिंदी में ही सुनाई देनी चाहिए। यही उपभोक्ता अधिकार है, यही सांस्कृतिक सम्मान है। अब समय है इस सवाल को तीखे स्वर में उठाने का कि आखिर हिंदी के लिए कब तक दो दबाना पड़ेगा?

(विभूति फीचर्स)

Must read

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article