शरद कटियार
उत्तर प्रदेश में सहकारिता क्षेत्र (cooperative sector) को सशक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के नेतृत्व में उल्लेखनीय कदम उठाए जा रहे हैं। हाल ही में लखनऊ में आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में मुख्यमंत्री ने सहकारिता विभाग की उपलब्धियों की विस्तार से समीक्षा की। आंकड़े बताते हैं कि राज्य ने एम-पैक्स गठन, डिजिटल भुगतान व्यवस्था, सीएससी सेवाओं और प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केन्द्रों के संचालन में अन्य राज्यों के मुकाबले तेजी से प्रगति की है। केन्द्रीय सहकारिता राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने भी इस दिशा में उत्तर प्रदेश की पहल को सराहनीय बताया।
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सहकारिता विभाग में बड़ी संख्या में पद खाली हैं। इन पदों के रिक्त रहने से आम किसानों और जमाकर्ताओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। गांव-गांव में स्थापित सहकारी समितियों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने में अड़चनें आ रही हैं। जिन सेवाओं को सरल और सहज बनाने का लक्ष्य रखा गया है, वही सेवाएं समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। किसान भाइयों को ऋण वितरण, उर्वरक उपलब्धता और विविधीकृत सेवाओं तक पहुंच में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
प्रदेश सरकार ने सहकारी बैंकों को पुनर्जीवित कर एनपीए को घटाने और लाभ में लाने का सराहनीय कार्य किया है। 2017 में जहां 800 करोड़ का एनपीए था, वहीं अब यह घटकर 278 करोड़ रह गया है। लेकिन अगर सहकारिता विभाग में रिक्त पदों की समस्या समय रहते दूर नहीं की गई, तो किसानों का विश्वास डगमगा सकता है।
सहकारिता भारतीय ग्रामीण समाज की आत्मा है। यह केवल आर्थिक मॉडल नहीं बल्कि सामाजिक जुड़ाव का माध्यम भी है। किसानों और ग्रामीणों का भरोसा कायम रखने के लिए आवश्यक है कि विभाग में रिक्त पदों को तत्काल भरा जाए। अधिकारी-कर्मचारियों की मौजूदगी ही योजनाओं की धरातल पर सफलता सुनिश्चित कर सकती है।
सहकारिता क्षेत्र में जो प्रगति दिखाई दे रही है, उसे टिकाऊ और सर्वव्यापी बनाने के लिए प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करना बेहद जरूरी है। किसान और ग्रामीण जनता सिर्फ आंकड़ों से नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष सुविधा और सहयोग से संतुष्ट होती है। सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में ठोस पहल करते हुए सहकारिता विभाग को और अधिक सक्षम बनाए।