बाढ़ और खाद संकट : सरकार के बयानों और हकीकत के बीच की खाई

0
42

लखीमपुर खीरी की बाढ़ और खाद संकट ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी सरकारें ज़मीन पर उतरकर समस्याओं का समाधान ढूंढना चाहती हैं या फिर केवल बयानबाज़ी और कागज़ी दावों से जनता को भरमाना ही उनका उद्देश्य है। हाल ही में पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी ने अपने ही मंत्रियों पर तीखा प्रहार करते हुए इस सवाल को और गंभीर बना दिया है।
टेनी का बयान कोई सामान्य राजनीतिक तंज नहीं है। जब सरकार का ही एक वरिष्ठ नेता खुलेआम कहे कि मंत्रीगण जनता को गुमराह कर रहे हैं, तो इसका अर्थ है कि व्यवस्था में गहरी खामियां हैं। उन्होंने जल शक्ति मंत्री और कृषि मंत्री के बयानों को जनता के लिए भ्रामक करार देते हुए कहा कि “हकीकत से परे दावे किसानों और ग्रामीणों के साथ धोखा हैं।” सच भी यही है—क्योंकि बाढ़ से जूझते सैकड़ों गांवों की तस्वीरें और खाद के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े किसानों की पीड़ा किसी से छिपी नहीं है।
एक मंत्री कहते हैं कि जिले में खाद की कोई कमी नहीं है। लेकिन किसान बताते हैं कि उन्हें खाद के लिए कई-कई दिन चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। कोई कहता है कि बाढ़ की समस्या गंभीर नहीं है, लेकिन वही गांव जलमग्न हैं, जिनकी सड़कों पर नावें चल रही हैं और जिनके घर-खलिहान डूब चुके हैं। यह विरोधाभास केवल तथ्यों का नहीं है, बल्कि संवेदनशील मुद्दों पर जनता की पीड़ा से मुंह मोड़ने जैसा है।
लखीमपुर खीरी की स्थिति बेहद दयनीय है। खेतों में लगी फसलें बर्बाद हो गईं, मकान टूट गए, स्कूल और सड़कें पानी में समा गए। ऊपर से खाद और अन्य कृषि इनपुट की कमी ने किसानों को निराशा के गहरे गर्त में धकेल दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि न तो राहत शिविर पर्याप्त हैं, न ही सरकारी मदद समय पर पहुंच पा रही है। इस बीच नेताओं के आश्वासन और बयानों की झड़ी आम आदमी के घावों पर नमक छिड़कने जैसा काम कर रही है।
टेनी का यह खुला विरोध केवल सरकार की नीतियों पर सवाल नहीं उठाता, बल्कि यह भी बताता है कि सत्ता के भीतर ही बाढ़ और खाद संकट को लेकर गंभीर मतभेद हैं। विपक्ष तो पहले से ही इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर है, लेकिन जब सरकार का ही वरिष्ठ नेता जनता की समस्याओं को उजागर करने लगे, तो यह स्पष्ट संकेत है कि वास्तविकता को अब और दबाया नहीं जा सकता। जनता यह समझने लगी है कि भाषणों और हकीकत के बीच बहुत बड़ी खाई है।
इस समय सरकार के पास दो ही विकल्प हैं—या तो वह आंख मूंदकर अपने मंत्रियों के दावों को दोहराती रहे और जनता का विश्वास खो दे, या फिर ईमानदारी से ज़मीनी हकीकत को स्वीकार कर राहत और मदद के ठोस कदम उठाए। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों की गति तेज करना, किसानों को खाद और अन्य इनपुट समय पर उपलब्ध कराना और प्रशासनिक मशीनरी को सक्रिय करना ही असली समाधान है।
बाढ़ और खाद संकट ने यह साबित कर दिया है कि जनता के सामने केवल भाषणों और आंकड़ों की जुगलबंदी काम नहीं आने वाली। संकट की घड़ी में लोगों को सहारा और समाधान चाहिए, न कि बहाने और विरोधाभासी बयान। टेनी का यह बयान सरकार के लिए चेतावनी है कि यदि उसने जनता की आवाज़ नहीं सुनी, तो यह असंतोष जल्द ही राजनीतिक परिणामों में भी झलकेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here