नेपाल इन दिनों भीषण राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है। बेरोज़गारी, पारदर्शिता और राजनीतिक सुधारों की मांग से शुरू हुआ युवाओं का आंदोलन आज हिंसा की आग में झुलस रहा है। संसद भवन में आगजनी, नेताओं के आवासों पर हमले और सेना की सड़कों पर तैनाती – यह तस्वीर केवल एक पड़ोसी देश की आंतरिक समस्या नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता पर मंडराते ख़तरे की गवाही दे रही है।
इस आंदोलन की जड़ें युवाओं की पीड़ा और उनकी वास्तविक समस्याओं में थीं। लगातार बढ़ती बेरोज़गारी, अवसरों की कमी, महंगाई और भ्रष्टाचार ने नई पीढ़ी को गहरे असंतोष से भर दिया है। लंबे समय से लोकतांत्रिक संस्थाओं से भरोसा उठता गया और जब सरकार ने उनकी आवाज़ को गंभीरता से सुनने के बजाय कठोर कदम उठाए, तो यह असंतोष हिंसा में बदल गया। लोकतंत्र में जब संवाद और सहभागिता की जगह दमनकारी रवैया हावी हो जाता है, तो नतीजा अराजकता ही होता है। नेपाल आज उसी स्थिति का सामना कर रहा है।
नेपाल की कुल जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवा है। यही वर्ग आर्थिक विकास और अवसरों की सबसे अधिक अपेक्षा रखता है। लेकिन जब शिक्षा के बाद उन्हें रोजगार नहीं मिलता, भ्रष्टाचार से रास्ते बंद हो जाते हैं और पारदर्शिता का अभाव उनके भविष्य को अंधकारमय कर देता है, तो उनका गुस्सा लाज़िमी है। यह आंदोलन केवल किसी राजनीतिक दल या विचारधारा का उत्पाद नहीं, बल्कि उस पीढ़ी की चीख है जिसे भविष्य की राह दिखनी चाहिए थी।
आज हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि संसद भवन में आग लगा दी गई, कई हिस्सों को नुकसान पहुँचा और नेताओं के घर भी सुरक्षित नहीं रहे। सरकार ने सेना को तैनात कर दिया है, इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया है और कई जिलों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं। लेकिन यह उपाय समस्या का समाधान नहीं, बल्कि अस्थायी नियंत्रण भर है। हिंसा यदि इसी तरह बढ़ती रही, तो नेपाल के राजनीतिक ढांचे और उसकी संवैधानिक व्यवस्था पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
नेपाल की इस अस्थिरता का असर सीमाओं से परे महसूस किया जा रहा है। भारत सहित अन्य देशों ने यात्रियों को सतर्क रहने की सलाह दी है। एयर इंडिया और इंडिगो जैसी प्रमुख एयरलाइनों ने अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं, जिससे आम नागरिक और पर्यटक फंसे हुए हैं। भारत-नेपाल के बीच भौगोलिक निकटता, सांस्कृतिक जुड़ाव और आर्थिक साझेदारी को देखते हुए यह संकट भारत के लिए भी चिंता का विषय है। नेपाल यदि लंबे समय तक अस्थिर रहा, तो इसका असर भारत की सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और आर्थिक संबंधों पर पड़ना तय है।
नेपाल सरकार ने सेना को उतारकर और इंटरनेट बंद करके हालात पर नियंत्रण पाने की कोशिश तो की है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे स्थायी शांति स्थापित हो पाएगी? इतिहास गवाह है कि सेना की मौजूदगी और कर्फ्यू जैसे कदम असंतोष को दबा सकते हैं, पर खत्म नहीं कर सकते। समस्या की जड़ें युवाओं की आकांक्षाओं और उनकी उम्मीदों में हैं। उन्हें सुना जाए, उनकी समस्याओं का ठोस समाधान दिया जाए और उनके भविष्य को सुरक्षित बनाने की दिशा में ठोस नीति बने – तभी हालात बदलेंगे।
नेपाल सरकार को यह समझना होगा कि देश की स्थिरता युवाओं की संतुष्टि और उनके भरोसे पर टिकी है। लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनाव कराना नहीं होता, बल्कि जनता की आवाज़ सुनना और उनके साथ संवाद कायम रखना भी होता है। समय आ गया है कि सत्ता अपने अहंकार को त्यागकर युवाओं के साथ बैठकर बातचीत करे, उनके गुस्से और असंतोष को समझे और उन्हें विश्वास दिलाए कि उनके भविष्य की रक्षा की जाएगी।
नेपाल की मौजूदा स्थिति भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया के लिए चेतावनी है। यह संदेश साफ़ है कि जब तक सरकारें युवाओं की आकांक्षाओं और उनकी ज़रूरतों को प्राथमिकता नहीं देंगी, तब तक लोकतंत्र की नींव कमजोर ही होती रहेगी। नेपाल यदि इस संकट से सीख ले और संवाद व सहमति का रास्ता अपनाए, तो वह न केवल अराजकता से बाहर आ सकेगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता में भी अहम भूमिका निभा सकेगा।