“लौटने लगे पुराने साथी , ब्राह्मण-मुस्लिम समीकरण साधने में जुटीं बसपा सुप्रीमो”
“2027 से पहले सपा-भाजपा दोनों के लिए चुनौती बन रहीं मायावती”
पिछड़ा, और दलित पहले से करता रहा विश्वास
शरद कटियार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों गहरी हलचल के दौर से गुजर रही है। कभी अडिग और कठोर छवि वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती अब बदले हुए अंदाज़ में नज़र आ रही हैं। राजनीति में परिपक्वता के साथ उन्होंने सख्ती छोड़ नरमी का रास्ता अपनाया है। यही वजह है कि उनके पुराने साथी और कट्टर विरोधी तक फिर से उनकी ओर रुख कर रहे हैं।
पुराने साथी लौटने लगे
सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व राज्यसभा सांसद अशोक सिद्धार्थ हैं। मायावती ने उन्हें पार्टी से बाहर करते समय साफ कह दिया था कि “मरते दम तक वापस नहीं लूंगी”। लेकिन जब सिद्धार्थ ने सोशल मीडिया पर माफी मांगी तो मायावती ने न केवल उन्हें माफ किया बल्कि दोबारा बसपा में शामिल कर लिया। यह घटना बताती है कि माया अब अपनों को माफ करने में देर नहीं लगातीं।वही अंदर खाने की माने तो बहुजन समाज पार्टी के पुराने दिग्गज जो स्तंभ कहे गए थे वह भी बसपा में दोबारा शामिल होंगे हालांकि अभी हम उनके नाम अपनी इस रिपोर्ट में खोल नहीं रहे।साथ ही आगामी 2027 विधान सभा चुनाव मे 19 दल भी माया संग कदमताल करते दिखेंगे।
सोशल मीडिया पर एक्टिव माया
मायावती इन दिनों सोशल मीडिया पर भी खासी सक्रिय हैं। पहले जहां वह बयानबाजी से दूरी बनाए रखती थीं, वहीं अब ट्विटर और अन्य मंचों पर लगातार अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हैं। उनकी यह बदली हुई रणनीति युवाओं से जुड़ने और अपनी विचारधारा को नए सिरे से फैलाने की कवायद मानी जा रही है।
ब्राह्मण और मुस्लिम कार्ड पर फोकस
बसपा का पारंपरिक वोट बैंक दलित और पिछड़ा समाज रहा है, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरणों में माया ब्राह्मण और मुस्लिम वोट बैंक पर भी खास ध्यान दे रही हैं।
ब्राह्मण समाज का झुकाव बसपा की ओर धीरे-धीरे लौटता दिख रहा है।
वहीं, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान के कठिन समय में जब अखिलेश यादव उनसे दूरी बनाए रहे, तब मायावती ने नरमी दिखाकर मुस्लिम समाज को भी साधने की कोशिश की।
मायावती आगामी 9 अक्टूबर को “परि निर्माण दिवस” पर मान्यवर कांशीराम के पुराने अनुयायियों को साथ लेकर बड़ा शक्ति प्रदर्शन करने की तैयारी कर रही हैं। यह आयोजन न केवल बसपा के लिए बल्कि प्रदेश की राजनीति के लिए भी संदेश देने वाला होगा।
बामसेफ की नाराजगी खत्म
कभी बामसेफ से नाराजगी झेल रही मायावती के समीकरण अब बदल चुके हैं। संगठन का बड़ा हिस्सा फिर से उनके साथ खड़ा है। वहीं शासन-प्रशासन से जुड़े अधिकारी भी उनके कार्यकाल को याद कर तारीफ करने से पीछे नहीं हटते।
अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) मॉडल के जरिए अपना आधार मजबूत करने की कोशिश की थी। लेकिन मायावती की मुस्लिमों और दलितों पर बढ़ती पकड़ इस मॉडल को कमजोर कर सकती है।
भाजपा के लिए ब्राह्मण वोट बैंक हमेशा से ताकत रहा है। लेकिन यदि बसपा फिर से ब्राह्मणों को आकर्षित करने में सफल रहती है तो भाजपा का समीकरण गड़बड़ा सकता है, खासकर पूर्वांचल और मध्य यूपी में।
राजभर, चंद्रशेखर आजाद, ओवैसी और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के लिए मायावती का यह नया रूप खतरे की घंटी है। अभी तक ये नेता बसपा की कमजोरी का फायदा उठाकर अपनी जमीन तलाश रहे थे, लेकिन माया की सक्रियता से उनका असर सीमित हो सकता है।
2012 के बाद से लगातार कमजोर होती बसपा अब फिर से मुख्यधारा की राजनीति में लौटने की तैयारी कर रही है। यदि मायावती की यह रणनीति सफल होती है तो 2027 के विधानसभा चुनाव में बसपा “किंगमेकर” की भूमिका निभा सकती है।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. आर.के. सिंह का कहना है,
“मायावती अब उस दौर में पहुंच चुकी हैं जहां उन्हें सख्त फैसलों से ज्यादा लचीलेपन की ज़रूरत है। उनकी यही नई छवि उन्हें फिर से दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच भरोसेमंद बना रही है।”
लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. सुषमा त्रिपाठी मानती हैं,
“बसपा का ब्राह्मण और मुस्लिमों पर फोकस सीधे-सीधे भाजपा और सपा के लिए चुनौती है। मायावती का यह कदम 2027 के समीकरण को पूरी तरह बदल सकता है।”
वरिष्ठ पत्रकार अनिल मिश्रा कहते हैं,
“बसपा का वोट बैंक हमेशा वफादार रहा है। यदि मायावती ने एक बार फिर से ऊर्जा भर दी तो वह न सिर्फ सीटें बढ़ा सकती हैं, बल्कि यूपी की सत्ता की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।”