राजीव राय की बातचीत से उठा नया सवाल—क्या चुनावी राजनीति में नेता उम्र को लेकर भी करते हैं ‘हीरा-फेरी ‘?
दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद राजीव राय के बीच जन्मदिन पर हुई हल्की-फुल्की बातचीत ने अब राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी है।
अमित शाह ने फोन पर बधाई देते हुए मज़ाकिया अंदाज में पूछा— “तो अब कितने साल के हो गए?” इस पर राजीव राय ने चुटकी लेते हुए जवाब दिया—
“ऑफीशियली तो 56 साल का हो गया हूं… लेकिन असली में 53 साल का ही हूँ।”
राजीव राय का यह जवाब सुनते ही कई राजनीतिक विश्लेषकों और आम लोगों के बीच चर्चा शुरू हो गई है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर नेता उम्र को लेकर इतना संकोच क्यों रखते हैं? क्या राजनीति में सीट पाने, चुनावी समीकरण साधने या पेंशन/सेवानिवृत्ति की गणना जैसी वजहों से नेता अपनी उम्र को लेकर ‘हीरा-फेरी’ करते हैं?
भारत की राजनीति में यह कोई नया मुद्दा नहीं है। समय-समय पर नेताओं की शैक्षिक योग्यता, जन्मतिथि और उम्र को लेकर विवाद उठते रहे हैं। ऐसे में राजीव राय और अमित शाह की इस बातचीत ने एक हल्के मजाक को गंभीर राजनीतिक विमर्श में बदल दिया है।
हालांकि यह बातचीत यह भी दर्शाती है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद नेताओं के बीच व्यक्तिगत रिश्ते सहज बने रहते हैं। राजीव राय ने खुद स्वीकार किया कि अमित शाह का फोन उनके लिए अप्रत्याशित खुशी लेकर आया। उन्होंने कहा—
“राजनीति अपनी जगह है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर संवाद और मानवीय रिश्ते बहुत अहम हैं।”
उम्र के आधार पर नेताओं को युवा नेता या अनुभवी चेहरा बताकर चुनावी मैदान में उतारा जाता है।
कई बार राजनीतिक छवि बनाए रखने और नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए नेता अपनी उम्र कम दिखाना पसंद करते हैं।