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Tuesday, October 28, 2025

सफेदपोश संरक्षण में पलता रहा गुंडाराज: अनुपम दुबे को छोड़ कई माफियाओं पर कार्रवाई सिर्फ कागज़ों तक सीमित?

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– आठ साल से कुख्यात गैंग का दबदबा, अब भी जनता में काफ़ी डर और सरकार से उम्मीद

फर्रुखाबाद: अपराध और राजनीति का गठजोड़ एक बार फिर सुर्खियों में है। माफिया Anupam Dubey और संजीव परिया जैसे कुख्यात भले ही जेल या भगवान के घर पहुंच गए हों, लेकिन इनके गिरोहों को लंबे समय से सत्ता से जुड़े सफेदपोशों (white collar people) का संरक्षण मिलता रहा है। समाजवादी पार्टी के दौर में यह गैंग खुले मंच पर नेताओं के साथ मौजूद रहा और आज भी इनके अन्य साथियों के हौसले बुलंद हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के करीबी गैंगस्टर योगेंद्र सिंह यादव उर्फ चुन्नू और देवेंद्र सिंह यादव उर्फ जग्गू, जो सपा का जिला उपाध्यक्ष भी रहा है, पर आठ साल बाद कार्रवाई का नंबर आ सका। जब जिले की कमान तेज तर्रार डी एम आशुतोष द्विवेदी और एसपी आरती सिंह के हाथ आ पाई।वहीं जनपद एटा के भू माफिया पूर्व विधायक रामेश्वर सिंह यादव के पुत्र गंगेस्टर सुबोध यादव पर जिले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी। नगन्य स्तर पर हुई कार्रवाई भी सिर्फ कागजों में खानापूर्ति रही, और उसमें भी फर्रुखाबाद के कुछ माननीयों का वरदहस्त बताया जाता है।

यही नहीं, गँगेस्टर सुबोध यादव का सबसे भरोसेमंद और करीबी जिला पंचायत सदस्य आदित्य सिंह राठौर, जो भू-माफिया और गैंगस्टर के रूप में कुख्यात है, खुलेआम एक भोजपुर भाजपा विधायक के मंच पर साथ नजर आता है। ऐ के राठौर पर तमाम आरोपों और आपराधिक इतिहास के बावजूद कोई भी हाथ डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।

इसी कड़ी में कचहरी का चर्चित दलाल और माफिया अनुपम दुबे का लिपिकीय मुंशी तथा संजीव परिया का खास नान प्रैक्टिशनर वकील अवधेश मिश्रा आज भी अपने पुराने ढर्रे पर काम कर रहा है। वहीं माफिया और गैंग कनेक्शन वाले भाई अनुराग दुबे डब्बन और बब्बन के खास गुर्गे आज भी खुलेआम जमीनों के खेल को अंजाम देकर कानून व्यवस्था को मजाक बना रहे हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकारों ने इन माफियाओं पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की है। अपराधियों को संरक्षण देने वाले राजनीतिक चेहरों की वजह से आम जनता आज भी भय के साये में जी रही है। योगी सरकार ने भले ही “जीरो टॉलरेंस” की नीति का ऐलान किया हो, लेकिन बीजेपी समर्थकों का उत्पीड़न और माफियाओं की मनमानी यह संदेश दे रही है कि हालात सपा शासन से बहुत अलग नहीं हैं।

अब देखना यह होगा कि आने वाले 19 महीनों में क्या सचमुच इन माफियाओं और उनके राजनीतिक संरक्षकों की कमर तोड़ने वाली कार्रवाई होगी, या फिर यह खेल सत्ता बदलने तक ऐसे ही चलता रहेगा।

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