✍️ शरद कटियार, मुख्य संपादक – यूथ इंडिया
कभी–कभी सोचता हूँ कि system से लड़ने की ताकत आखिर क्यों इतनी जल्दी चुक जाती है? जब कोई अफसर (officers) सेवा की शुरुआत करता है तो उसकी आँखों में चमक होती है, सपनों में उम्मीद होती है और भीतर एक अडिग विश्वास होता है कि वह सब बदल देगा। वह गलत के खिलाफ खड़ा होगा, व्यवस्था को सुधारेगा और समाज को न्याय दिलाएगा। लेकिन साल-दो साल नहीं, कुछ ही बरसों में वही सिस्टम उसे यह सिखा देता है कि— “जैसे सब चल रहे हैं, वैसे ही चलो।”
कानपुर के वकील दुबे प्रकरण ने इस कड़वी हकीकत को फिर याद दिला दिया। चर्चा में आए उस अफसर का नाम इसलिए गूंजा क्योंकि उसने भीड़ से अलग होकर सच का साथ देने की हिम्मत दिखाई। आज के दौर में यह हिम्मत ही सबसे दुर्लभ है। फर्रुखाबाद मे अपराधियों और माफिया पर जान की बाजी लगा कर सिस्टम के साथ खड़े रहे जवांज पुलिस कर्मी आज उसी जिले मे अलग थलग पड़े, उनपर माफिया हावी है, और आश्चर्य मी बात है कि उनके आलाधिकारी काना फूसी के चलते अपने जवाजों को ही न केवल भुला चुके, बल्कि उन्हें दण्डित भी कर बैठे।
मेरे 27 साल के पत्रकारिता जीवन में असंख्य अफसरों से मुलाकात हुई, मेरे ही बीते 10 सालों तक तो अपराध और अपराधियों से सीधे टकराते हुए बीते। पर जब ईमानदारी और नैतिक बल की कसौटी पर कसना शुरू किया, तो गिने-चुने अफसर ही उस पर खरे उतरे। यह संख्या इतनी कम थी कि उंगलियों पर गिनी जा सके। और फिर समय बदला। जो कभी निडर थे, वे भी डरने लगे। जो कभी सच बोलने का साहस रखते थे, वे भी अब धीरे से, फुसफुसाकर बातें करने लगे। जो कभी समाज में अन्याय के खिलाफ पहाड़-से खड़े दिखते थे, वे भी अब साथ खड़े होने से कतराने लगे।
सवाल यह नहीं है कि अफसर डरते क्यों हैं। सवाल यह है कि क्या हमने एक ऐसा माहौल बना दिया है जिसमें सच बोलना और सच के लिए खड़ा होना सबसे खतरनाक काम बन गया है? यह विडंबना है कि आज भी व्यवस्था में नैतिक बल अपवाद की तरह दिखता है। समाज ऐसे अफसरों की बातें सुनकर चौंक जाता है, जैसे किसी चमत्कार को देख रहा हो। जबकि सच तो यह है कि ईमानदारी, साहस और नैतिकता किसी अफसर का सबसे बड़ा आभूषण होना चाहिए।
आज भी इस देश को ऐसे अफसरों की दरकार है जो बिना डरे सच बोल सकें, गलत का विरोध कर सकें और अपनी निडरता से समाज को राह दिखा सकें। क्योंकि पद और कुर्सी से बड़ा अगर कुछ है, तो वह है चरित्र और साहस। और मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि ऐसे अफसर अब बेहद दुर्लभ हो चले हैं।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप