उत्तर प्रदेश में बढ़ता कर्ज: चिंता या विकास की ज़रूरत?

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उत्तर प्रदेश बीते कुछ वर्षों में विकास की तेज़ रफ्तार पकड़ रहा है। सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं पर बड़े पैमाने पर निवेश हुआ है। लेकिन इसी के साथ राज्य पर ऋण का बोझ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। चालू वित्त वर्ष 2025-26 में प्रदेश पर नौ लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो जाने का अनुमान है। यह आंकड़ा 2018-19 में छह लाख करोड़ रुपये था। यानी सिर्फ पांच साल में करीब तीन लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त देनदारी जुड़ गई है।
इस कर्ज़ के बढ़ते बोझ का सीधा असर जनता पर भी पड़ता है। आज उत्तर प्रदेश का हर नागरिक औसतन 37,500 रुपये का कर्जदार है। यह स्थिति सतही तौर पर चिंताजनक लग सकती है, लेकिन वित्त आयोग और विशेषज्ञ मानते हैं कि कर्ज हमेशा नकारात्मक संकेत नहीं होता। यदि उधारी का उपयोग बुनियादी ढांचे और विकास कार्यों पर किया जाए, तो यह अर्थव्यवस्था को मज़बूत करता है और रोजगार के अवसर बढ़ाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारी भरकम कर्ज़ के बावजूद राज्य ने राजकोषीय अनुशासन बनाए रखा है। चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 2.97 प्रतिशत है, जो केंद्र सरकार की अधिकतम सीमा तीन प्रतिशत से कम है। यानी वित्तीय संतुलन को बिगड़ने नहीं दिया गया है।
इतिहास पर नज़र डालें तो स्थिति और स्पष्ट होती है। 2012-13 में जब सपा सरकार सत्ता में आई थी, राज्य का कुल कर्ज़ 2.25 लाख करोड़ रुपये था। 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यभार संभालने तक यह बढ़कर 3.75 लाख करोड़ हो गया। इसके बाद विकास योजनाओं और अवसंरचना पर निवेश बढ़ने के साथ कर्ज़ भी तेज़ी से बढ़ा।
आज सवाल यह नहीं है कि कर्ज़ बढ़ा या घटा, बल्कि यह है कि कर्ज़ का उपयोग किस दिशा में हो रहा है। यदि पारदर्शी तरीके से निवेश किया जाए और पुनर्भुगतान की ठोस योजना हो, तो यह बोझ नहीं बल्कि विकास की सीढ़ी साबित हो सकता है। मगर यदि यह धन केवल उपभोग या अल्पकालिक योजनाओं में खर्च हुआ, तो आने वाले समय में यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर गंभीर दबाव डालेगा।
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के लिए यह संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है—ऋण भी बढ़े और विकास भी। सरकार को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि कर्ज़ का हर रुपया जनता की तरक्की और भविष्य की मज़बूत बुनियाद पर खर्च हो।

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