– 2012और 2017के चुनाव में भाजपा के साथ रहे कुर्मी वोट बैंक 2022 में सपा की ओर शिफ्ट, आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण
लखनऊ । उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुर्मी समुदाय लगातार चर्चा में है। राज्य की राजनीति में कुर्मी मतदाता किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित होते रहे हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 41 कुर्मी विधायक और 5 विधान परिषद सदस्य हैं। वहीं, भारतीय संसद में कुर्मी समुदाय के 11 सांसद हैं।
हालांकि, मोदी सरकार में कुर्मी समुदाय को प्रतिनिधित्व मिला है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में दो राज्य मंत्री—जिनमे पंकज चौधरी और अनुप्रिया पटेल शामिल हैं जो अपना दल यानि सहयोगी दल हैँ, इतनी बड़ी संख्या के रूप में मोदी सरकार में एक भी कैबिनेट मंत्री पद कुर्मी नेता को नहीं मिला ना ही कोई असरदार नेता बनाया गया है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में तीन कैबिनेट मंत्री—राकेश सचान, स्वतंत्र देव सिंह और आशीष पटेल—शामिल हैं, जबकि संजय गंगवार राज्य मंत्री हैं।
कुर्मी वोट बैंक में बदलाव के कारण कैबिनेट मंत्री
स्वतंत्र देव सिंह और आशीष पटेल की कार्यप्रणाली और लोकसमर्थन अपेक्षित नहीं रहा।और पटेल भाजपा के नहीं तो उनकी चलती भी नहीं है।संजय गंगवार राज्यमंत्री हैँ, जो केवल पीलीभीत क्षेत्र तक सीमित कर दिए गए हैं।
भाजपा के अंदर कुर्मी बिरादरी का दबदबा पहले के मुकाबले कमजोर हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के जमाने में उत्तर प्रदेश सरकार में कुर्मियों का दबदबा अच्छा खासा था और दौर में संतोष गंगवार,ओमप्रकाश सिंह,विनय कटियार,प्रेमलता कटियार,रामकुमार वर्मा यह ऐसे प्रभावी नाम थे, जिनका एक आदेश पर्याप्त होता था, तब पूरे प्रदेश भर के कुर्मियों के काम होते थे।आज के मंत्री ना तो काम करने के काबिल हैं और जो हैँ भी वह किसी की सुनते नहीं है।योगी सरकार में मुख्यमंत्री के बेहद करीबी माने जाने वाले स्वतंत्र देव सिंह के यहां प्रदेश का कुर्मी जाना नहीं चाहता क्योंकि बह किसी के न काम आते और ना ही किसी को पहचानने की जरूरत समझते हैं राकेश सचान कैबिनेट मंत्री जरूर हैं लेकिन वह कानपुर तक सीमित कर दिए गए आशीष पटेल सहयोगी दल के हैं इसलिए उनकी चलती ही नहीं है।
विश्लेषकों के अनुसार, 2014 और 2019 में कुर्मी वोट बैंक भाजपा के साथ रहा, लेकिन 2022 में यह प्रवृत्ति बदल गई। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा ने 27 ओबीसी में से 10 सीटों पर कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें अधिकांश जीत भी हासिल हुई। वहीं, भाजपा ने 6 कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें केवल 3 जीत सके।
उत्तर प्रदेश में कुल 50 विधानसभा और 10 लोकसभा सीटों को देखें तो कुर्मी वोट सर्वाधिक प्रभावशाली है। सपा ने इस समुदाय में गहरी सेंध लगाई और भाजपा का स्ट्राइक रेट 50% से कम रह गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव कुर्मी समुदाय की स्थानीय नेतृत्व के प्रति असंतोष और भाजपा में प्रतिनिधित्व की कमियों के कारण हुआ है। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव कुर्मी वोट बैंक पर लगातार नजर बनाए हुए हैं, जिससे आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय का झुकाव सपा की ओर बढ़ रहा है। भाजपा को यदि यह वोट बैंक बरकरार रखना है तो स्थानीय नेताओं की कार्यप्रणाली और जनता से जुड़ाव में सुधार करना अनिवार्य होगा। अन्यथा, आगामी विधानसभा चुनाव में सपा की रणनीति कुर्मी मतदाता प्रभावित करने में निर्णायक साबित हो सकती है।
मुलायम -बेनी की जुगलबंदी के युग की होती आहत
ओबीसी में नहीं कर पाई भाजपा सेंध मारी राम भक्तों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण दिया गया,मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया लेकिन वोट बैंक अपनी जगह ही स्थिर रहा भाजपा का कोर वोट कुर्मी भी बीते चुनाव मे खिसक गया।उत्तर प्रदेश में 6 फीसद जनसंख्या की भागीदारी वाला यह वोट बैंक आज भाजपा से दूर है, आज कुर्मी जाति की सरकार में कोई सुनने वाला नहीं यह चर्चाएं आम है वहीं अखिलेश यादव का पड़ा का नारा दिन पर दिन कर पकड़ता दिख रहा है मौजूदा समीकरण वैसे ही बना रहे हैं जैसे मुलायम और बेनी प्रसाद वर्मा के युग में थे, बीजेपी के कुर्मी मंत्रियो की बेरुखी के दुष्प्रभाव 2027 के चुनाव में देखे जा सकेंगे।