आम जनता को राहत नहीं
नई दिल्ली: India को पिछले तीन साल से रूस (Russia) से 5 से 30 डॉलर प्रति बैरल के डिस्काउंट पर कच्चा तेल मिल रहा है, लेकिन इसका फायदा आम आदमी की जेब तक नहीं पहुंच पाया है। इस सस्ते तेल का 65 फीसदी लाभ सरकारी और निजी तेल कंपनियों (oil companies) को और 35 फीसदी लाभ केंद्र और राज्य सरकारों को मिला है। आम उपभोक्ता को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई राहत नहीं दी गई। तेल कंपनियों ने इस दौरान जबरदस्त मुनाफा कमाया।
इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का 2022-23 में कुल मुनाफा 3,400 करोड़ रुपये था जो 2023-24 में बढ़कर 86,000 करोड़ रुपये हो गया, यानी लगभग 25 गुना। 2024-25 में यह घटकर 33,602 करोड़ रुपये रह गया, लेकिन फिर भी 2022-23 के मुकाबले कई गुना अधिक है। निजी क्षेत्र में रिलायंस और नायरा एनर्जी को भी भारी फायदा हुआ। रिलायंस को प्रति बैरल 12.5 डॉलर और नायरा को 15.2 डॉलर का रिफाइनिंग मार्जिन मिला। यानी सस्ते में तेल खरीदकर, उसे प्रोसेस करके और महंगे में बेचकर बड़ी कमाई हुई।
सरकार के खजाने में भी टैक्स के रूप में बड़ी रकम आई। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है, जबकि राज्य सरकारें वैट लगाती हैं। पेट्रोल की कीमत का 46 फीसदी और डीजल की कीमत का 42 फीसदी हिस्सा टैक्स में चला जाता है।
केंद्र को हर साल लगभग 2.7 लाख करोड़ रुपये और राज्यों को करीब 2 लाख करोड़ रुपये की कमाई होती है। अप्रैल 2025 में केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर दी, जिससे अतिरिक्त 32,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई। सरकार के लिए यह टैक्स स्थायी और भरोसेमंद आय का जरिया बन गया है, जिसे वह आम जनता को राहत देने के बजाय अन्य खर्चों में इस्तेमाल कर रही है।
डेटा और एनालिटिक्स कंपनी केपलर के अनुसार, 2025 की पहली छमाही में भारत ने रूस से 23.1 करोड़ बैरल कच्चा तेल आयात किया। इसमें से 45 फीसदी तेल रिलायंस और नायरा एनर्जी ने खरीदा। 2022 में इनकी हिस्सेदारी केवल 15 फीसदी थी। रिलायंस ने अपने कुल कच्चे तेल का करीब 30 फीसदी रूस से खरीदा।
इन कंपनियों ने रूस से कच्चा तेल आयात कर उसे पेट्रोल, डीजल और एटीएफ जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों में बदला और फिर यूरोप, अमेरिका, यूएई और सिंगापुर जैसे देशों में बेचा। 2025 की पहली छमाही में दोनों कंपनियों ने मिलकर 6 करोड़ टन रिफाइंड उत्पाद निर्यात किए, जिनमें से 1.5 करोड़ टन यूरोपीय यूनियन को भेजे गए, जिसकी कीमत 15 अरब डॉलर रही।
रूस से तेल खरीद पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिक्रिया देखने को मिली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगा दिया और इसका कारण रूस से तेल खरीद को बताया। उनका कहना था कि भारतीय रिफाइनरी कंपनियां रूसी तेल को प्रोसेस करके यूरोप और अन्य देशों में बेच देती हैं, जबकि भारत को इस बात की परवाह नहीं है कि रूस के हमले से यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं।
भले ही भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें कागज पर डी-रेगुलेटेड हों, लेकिन असल में इन पर सरकार और कंपनियों का ही नियंत्रण है। सरकार को स्थिर टैक्स आय चाहिए और तेल कंपनियां पुराने एलपीजी सब्सिडी के नुकसान का हवाला देकर ऊंचे मार्जिन को सही ठहराती हैं। नतीजा यह है कि सस्ते तेल का फायदा कंपनियों और सरकार की कमाई बढ़ाने में लग रहा है, आम उपभोक्ता को राहत देने में नहीं।