थानाध्यक्ष ओमप्रकाश, तत्कालीन सीओ अमित चौरसिया और सिपाही धर्मेंद्र पर कोर्ट ने परिवाद दर्ज करने का दिया आदेश
शाहजहांपुर: जिले का सबसे बदनाम और चर्चित थाना अल्हागंज (Alhaganj) इन दिनों पुलिस की वर्दी को शर्मसार करने वाले एक ऐसे प्रकरण में घिरा है, जिसने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है। आरोप है कि थानाध्यक्ष ओमप्रकाश, तत्कालीन सीओ अमित चौरसिया और निलंबित सिपाही धर्मेंद्र ने न केवल रिश्वत न मिलने पर निर्दोष को शराब के फर्जी मुकदमे में जेल भेजा, बल्कि बाद में सच को दफनाने और साक्ष्य मिटाने का भी खेल खेला। अब CJM Court ने इन तीनों के खिलाफ परिवाद दर्ज करने का आदेश दिया है, जिससे जिले की पुलिस छवि पर काला धब्बा और गहरा हो गया है।
गांव राजकिराया निवासी बृजेश का आरोप है कि निलंबित सिपाही धर्मेंद्र ने उससे मोटी रिश्वत की मांग की। मना करने पर पुलिस उसके घर में घुस आई, मारपीट की और चार घंटे हवालात में सड़ाने के बाद शराब का झूठा मुकदमा ठोक कर जेल भेज दिया। थानाध्यक्ष ओमप्रकाश ने आरोपी सिपाही का न केवल बचाव किया, बल्कि पीड़ित की शिकायत दबाकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
धरना-प्रदर्शन के दबाव में तत्कालीन सीओ जलालाबाद अमित चौरसिया और थानाध्यक्ष ओमप्रकाश ने मौके पर आकर फर्जी केस खत्म करने का वादा किया, लेकिन पीड़ित के हटते ही दोनों ने उल्टा रिपोर्ट बदल दी, साक्ष्य मिटा दिए और उच्च अधिकारियों को गुमराह करने वाली जांच आख्या लगा दी।
हिम्मत न हारते हुए पीड़ित ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। नतीजा – सीजेएम कोर्ट ने तीनों आरोपियों पर परिवाद दर्ज करने का आदेश दे दिया।इधर, जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने भी पीड़ित की 13 बिंदुओं वाली शिकायत पर थानाध्यक्ष ओमप्रकाश के विरुद्ध मजिस्ट्रेट जांच बैठा दी है, जो अभी जारी है।
हाल ही में थाने का एक और काला सच सामने आया जब 25 लाख की रिश्वत मांगने का ऑडियो वायरल हुआ। धमकी देकर रकम ऐंठने के इस मामले ने सीधे उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तक दस्तक दी। आदेश के बाद सिपाही धर्मेंद्र और जावेद को निलंबित कर दिया गया।
विवादों का अड्डा बन चुका अल्हागंज थाना — निर्दोष ग्रामीण को शराब के फर्जी मुकदमे में जेल भेजा।ऑनलाइन सुसाइड केस में दोषी आज तक जेल नहीं गए।थाने में बैठा आरोपी सीसीटीवी के बावजूद फरार, मामला दबा।साहबगंज के ग्रामीण से रिश्वत लेने का आरोप।सूत्र बताते हैं कि ज्यादातर डीलिंग एक बीएसपी नेता के घर होती थी और थानाध्यक्ष इसमें माहिर हैं कि कैसे भाजपा सरकार की छवि धूमिल करते हुए भी खुद को बचा लें और अफसरों को भ्रमित कर दें।
यह पूरा मामला सिर्फ एक थाने का नहीं, बल्कि उस सिस्टम की चीर-फाड़ है, जहां वर्दी अपराधियों के लिए कवच बन गई है और आम आदमी का सच, कागजों के ढेर में दफन हो जाता है। सवाल सिर्फ इतना है—क्या इस बार भी सत्ता और सिस्टम के गलियारों में यह गंदगी बच जाएगी, या वाकई सफाई होगी?