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Wednesday, August 6, 2025

दिल्ली समेत पूरे देश में लग सकते है बिजली के झटके, बिजली दर कि बढ़ोतरी को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी

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नई दिल्ली: देशभर के बिजली उपभोक्ताओं को जल्द ही झटका लग सकता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली (Delhi) समेत अन्य राज्यों में बिजली दरें बढ़ाने का रास्ता साफ कर दिया है। बुधवार को कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिजली वितरण कंपनियों के वर्षों से लंबित बकायों के भुगतान के लिए दरें बढ़ाना जरूरी है। अदालत ने कहा कि दिल्ली बिजली नियामक आयोग (DERC) को एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करना होगा, जिसमें यह तय किया जाए कि राजधानी में बिजली दरें कब, कितनी और कैसे बढ़ेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने शर्त रखी है कि दरों में बढ़ोतरी वाजिब और किफायती होनी चाहिए, जिससे उपभोक्ताओं पर अत्यधिक बोझ न पड़े।

यह मामला दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियों—बीएसईएस यमुना पावर, बीएसईएस राजधानी और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड द्वारा दायर याचिका से शुरू हुआ था। इन कंपनियों ने सालों से अटके अपने भुगतानों को लेकर अदालत में गुहार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस मामले का दायरा बढ़ाते हुए देश के उन सभी राज्यों को भी शामिल किया, जहां बिजली कंपनियों के बकाये वर्षों से लंबित हैं।

ने अपने फैसले में चार साल के भीतर सभी नियामकीय परिसंपत्तियों (Regulatory Assets) को खत्म करने के निर्देश दिए हैं। नियामकीय परिसंपत्तियों का मतलब उस राशि से है जो बिजली वितरण कंपनियों को राज्यों द्वारा आपूर्ति की गई बिजली के एवज में अभी तक नहीं मिली है। दिल्ली में यह बकाया पिछले 17 वर्षों से लंबित है और अब बढ़कर 20 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वहीं तमिलनाडु में यह बकाया 87 हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। अब इन राज्यों में आने वाले वर्षों में बिजली की दरें व्यक्तिगत, वाणिज्यिक और औद्योगिक सभी वर्गों के लिए बढ़ सकती हैं।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राज्य विद्युत नियामक आयोगों और अपीलीय ट्रिब्यूनल (APTEL) को भी उनके कार्यों में लापरवाही और देरी के लिए फटकार लगाई। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर ने कहा कि लंबे समय तक भुगतान टालने की वजह से बकायों में असंतुलित वृद्धि होती है, जिसका बोझ आखिरकार आम उपभोक्ता पर ही पड़ता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नियामक आयोगों का अकुशल कामकाज और समय पर निर्णय न लेना सिस्टम की विफलता को दर्शाता है।

नियामकीय घाटा यानी बिजली कंपनियों द्वारा बिजली खरीद और वितरण पर खर्च की गई राशि की वसूली न हो पाना, उपभोक्ताओं के लिए दीर्घकालिक वित्तीय बोझ बन जाता है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने बिजली दरों में वृद्धि की अनुमति दी है, तो दिल्ली समेत पूरे देश के उपभोक्ताओं को अगले कुछ वर्षों में बढ़ी हुई बिजली दरों का सामना करना पड़ सकता है। इसका असर आम आदमी से लेकर उद्योगों तक महसूस किया जाएगा।

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